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प्रकाश के परावर्तन के नियम क्या है ..?

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प्रकाश क्या है ...? इसके परावर्तन के क्या नियम है...?


 

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  1. प्रकाश एक विद्युतचुम्बकीय विकिरण है, जिसकी तरंगदैर्ध्य दृश्य सीमा के भीतर होती है। तकनीकी या वैज्ञानिक संदर्भ में किसी भी तरंगदैर्ध्य के विकिरण को प्रकाश कहते हैं। प्रकाश का मूल कण फ़ोटान होता है। प्रकाश की तीन प्रमुख विमायें निम्नवत है।

                 तीव्रता जो प्रकाश की चमक से सम्बन्धित है
                आवृत्ति या तरंग्दैर्ध्य जो प्रकाश का रंग निर्धारित करती है।
                ध्रुवीकरण (कम्पन का कोण) जिसे सामान्य परिस्थितियों में मानव नेत्र से अनुभव करना कठिन है। पदार्थ की तरंग-द्रव्य द्विकता के कारण प्रकाश एक ही साथ तरंग और द्रव्य दोनों के गुण प्रदर्शित करता है। प्रकाश की यथार्थ प्रकृति भौतिकविज्ञान के प्रमुख प्रश्नों में से एक है।

  1. (अंग्रेज़ी:Light) हमारी दृष्टि की अनुभूति जिस बाह्म भौतिक कारण के द्वारा होती है, उसे हम प्रकाश कहते हैं। अतः प्रकाश एक प्रकार का साधन है, जिसके सहारे आँख वाले लोग किसी वस्तु को देखने हैं। जब किसी वस्तु पर प्रकाश पड़ता है, तब उस वस्तु से प्रकाश टकराकर देखने वालें की आँख पर पड़ता है, जिससे व्यक्ति उस वस्तु को देख लेता है। वास्तव में प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है, जो विद्युत चुम्बकिय तरंगों के रूप में संचरित होती है।
  2. प्रकाश ऊर्जा का ही एक रूप है। प्रकाश का व्यवहार थोड़ा विचित्र है। न्युटन के कारपसकुलर अवधारणा(corpuscular hypothesis) के अनुसार प्रकाश छोटे छोटे कणों (जिन्हें न्युटन ने कारपसकल नाम दिया था।) से बना होता है। न्युटन का यह मानना प्रकाश के परावर्तन(reflection) के कारण था क्योंकि प्रकाश एक सरल रेखा मे परावर्तित होता है और यह प्रकाश के छोटे कणों से बने होने पर ही संभव है। केवल कण ही एक सरल रेखा मे गति कर सकते है।थामस यंग का प्रकाश अपवर्तन दिखाता डबल-स्लिट प्रयोग जिसने प्रकाश के तरंग होने की पुष्टि की थी।

लेकिन उसी समय क्रिस्चियन हायजेन्स( Christian Huygens) और थामस यंग( Thomas Young) के अनुसार प्रकाश तरंगो से बना होता था। हायजेन्स और यंग का सिद्धांत प्रकाश के अपवर्तन(refraction) पर आधारित था, क्योंकि माध्यम मे परिवर्तन होने पर प्रकाश की गति मे परिवर्तन आता था, यह प्रकाश के तरंग व्यवहार से ही संभव था। न्युटन के कारपसकुलर अवधारणा के ताबूत मे अंतिम कील मैक्सवेल(James Clerk Maxwell) ने ठोंक दी थी, उनके चार सरल समीकरणों ने सिद्ध कर दिया कि प्रकाश विद्युत-चुंबकिय क्षेत्र की स्वयं प्रवाहित तरंग( self-propagating waves) मात्र है। इन समीकरणों से प्रकाश की गति की सटीक गणना भी हो गयी थी।

लेकिन २० वी शताब्दि मे फोटो-इलेक्ट्रिक प्रभाव(Photoelectric effect) की खोज ने प्रकाश के कणो के बने होने के सिद्धांत मे एक नयी जान डाल दी।इन दोनो मे क्या सही है? क्या प्रकाश कण है ? या एक तरंग ?

आज हम जानते हैं कि ये दोनों सिद्धांत सही है, प्रकाश दोहरा व्यवहार रखता है, वह एक ही समय में कण और तरंग दोनों गुण-धर्म रखता है। प्रकाश के कण व्यवहार मे उसे फोटान कहा जाता है और उसके तरंग व्यवहार मे उसे विद्युत-चुंबकिय विकिरण(electro-magnetic radiation) कहा जाता है।

 

प्रकाश के गुणधर्म

जब प्रकाश अंतरिक्ष मे यात्रा करता है तब वह कई प्रकार के माध्यमो से गुजरता है। हम प्रकाश के परावर्तन(reflection) को से भलीभांति परिचित है क्योंकि हमने किसी चमकीली सरल सतह जैसे दर्पण द्वारा प्रकाश के परावर्तन को देखा है। यह प्रकाश का किसी विशिष्ट पदार्थ से किया गया विशेष व्यवहार है। जब प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम मे प्रवेश करता है उसकी किरणे मुड् जाती है, उसे हम अपवर्तन(refraction) कहते है। यदि कोई प्रकाश के मार्ग मे स्थित कोई माध्यम प्रकाश की भिन्न आवृत्तियों को भिन्न भिन्न तरीके से मोड़ दे तो हम प्रकाश के घटक रंगो को देख सकते है। उदाहरण के लिये वातावरण मे उपस्थित पानी की बूंदे सूर्य प्रकाश से इंद्र धनुष का निर्माण करती है। पानी की यह बूंदे सूर्यप्रकाश की भिन्न भिन्न आवृत्तियों को भिन्न भिन्न तरीके मोड़ देती है जिससे हर रंग का प्रकाश अलग हो जाता है और हमें प्रकाश के वर्ण-क्रम से सुंदर रंग दिखायी पड़ते है। कांच का प्रिज्म भी यही कार्य करता है। प्रिज्म पर जब एक विशिष्ट कोण पर प्रकाश डाला जाता है, प्रकाश अपवर्तित(मुडता) होता है, हर आवृत्ति अलग अलग कोण से मुडती है जिससे हमे अलग अलग रंग दिखायी पड़ते है। यह प्रभाव प्रिज्म के आकार और प्रकाश के कोण से उत्पन्न होता है।

यदि आप दायें चित्र को ध्यान से देखें तो पायेंगे कि प्रकाश कि जब प्रकाश तरंग प्रिज्म मे प्रवेश कर रही है तब वह नीचे की ओर मुड़ रही है। जब प्रकाश वायु से प्रिज्म मे प्रवेश करता है तब उसकी गति कम हो जाती है। जब प्रकाशतरंग का निचला भाग प्रिज्म मे प्रवेश करता है वह धीमा हो जाता है। जबकि प्रकाश तरंग का उपरी भाग जो अभी भी वायु मे है निचले भाग से अधिक गति मे यात्रा कर रहा है, प्रकाश तरंग के उपरी और निचले भाग की गति मे इस अंतर के कारण प्रकाश तरंग मुड़ जाती है। इसी तरह से जब प्रकाश तरंग प्रिज्म से बाहर जाती है, तरंग का उपरी भाग पहले बाहर आता है और उसकी गति निचले भाग से ज्यादा होती है जोकि अभी भी प्रिज्म के अंदर है। गति मे इस अंतर से तरंग मे और अधिक मोड् आ जाता है। किसी स्केटबोर्ड पर कोई खिलाड़ी जब किसी सपाट सतह से घास की सतह पर जाता है तब खिलाड़ी सामने झुक जाता है क्योंकि स्केट की गति कम हो गयी है लेकिन उसका शरीर भी भी पुरानी गति पर है। इसी तरह का व्यवहार प्रकाश भी कर रहा है जब वह एक माध्यम से दूसरे माध्यम मे जाता है तब वह मुड जाता है। स्केटबोर्ड और खिलाडी घास की सतह आने से पहले एक ही गति पर है अचानक स्केटबोर्ड घास की सतह पर आ गया है और स्केटबोर्ड खिलाडी कि तुलना मे धीमा हो गया है, जिससे खिलाडी सामने झुक जाता है। (वास्तविकता मे खिलाडी घास की सतह पर आने से पहले कि गति से चलने का प्रयास कर रहा है, न्युटन का गति का पहला नियम!)

हम प्रकाश की संरचना के बारे मे कुछ जानते है , अब हम प्रकाश गति समझने का प्रयास करते है। प्रकाश विद्युत-चुंबकिय विकिरण है, इसलिये प्रकाश गति को विद्युत-चुंबकिय विकिरण की गति के रूप मे समझना ज्यादा आसान है। वास्तविकता मे प्रकाशगति “सूचना की गति” है। कोई घटना घटित हुयी है या नही इसका पता हमे उस घटना की सूचना मिलने पर ही होता है। यह सूचना हमे उस घटना से उत्पन्न रेडीयो संकेत /प्रकाश द्वारा प्राप्त विद्युत-चुंबकिय विकिरण मे निहित होती है। कोई भी घटना काल-अंतराल मे उत्पन्न एक संयोग है और किसी भी घटना की सूचना किसी विकिरण के रूप मे ही उत्सर्जित होती है। निर्वात(Vaccume) मे इस सूचना का प्रवाह 299,792,458 मीटर/सेकंड की गति से होता है। एक लंबी  रेल-गाड़ी जब चलना प्रारंभ करती है तब अंतिम डिब्बा इंजन से साथ उसी समय एक साथ चलना प्रारंभ नही करता है। सबसे पहले इंजन चलता है, उसके बाद इंजन से सटा डिब्बा, उसके बाद दूसरा डिब्बा, क्रमशः अंत मे आखिरी डिब्बा। इंजन से आखिरी डिब्बे तक गति के प्रवाह मे विलंब होता है, इंजन से चलने की सूचना आखिरी डिब्बे तक कुछ् विलंब से पहुँच रही है। यह विलंब विशेष सापेक्षतावाद सूचना के स्थानांतरण के जैसे ही है, लेकिन विशेष सापेक्षतावाद मे सूचना की गति कि एक अधिकतम सीमा है; प्रकाशगति! कोई भी सूचना इस गति से ज्यादा तेज नहीं जा सकती है। आप रेल के इस उदाहरण को कितना भी विस्तृत कर लें लेकिन किसी भी तरह से इंजन के चलने की सूचना आप आखिरी डिब्बे तक प्रकाशगति से तेज नही पहुँचा सकते है!

  • answered 8 years ago
  • B Butts

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जब कोई प्रकाश की किरण एक माध्यम से चलकर दूसरे माध्यम की सतह से टकराकर वापस उसी माध्यम मेँ लौट आती हैँ तो इस घटना को प्रकाश का परावर्तन कहते हैँ |

परावर्तन के Laws/नियम:-

 

  • आपतित किरण, परावर्तित किरण, अभिलम्ब एक ही तल मेँ होते है |
  • आपतन कोण, परावर्तन कोण बराबर |
  • परावर्तित किरण की आवृत्ति एवं चाल अपरिवर्तित रहती है |

प्रकाश का वेग 3*10 की घात 8 मीटर/सैकण्ड |

  • answered 8 years ago
  • Sandy Hook

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प्रकाश का परावर्तन व नियम

हम रोज अपने बालों को कंघे की मदद से संवारते हैं ǃ कैसे ? बिल्‍कुल ठीक,आईने (Mirror) की मदद से । आईने में अपने चेहरे च अन्‍य वस्‍तुओं को कैसे देखते हैं ? मैं अपने बचपन में अक्‍सर आइने से दूसरो की आँखे को चमकाकर उनको परेशान किया करता था । शायद आप ने भी यही क्रिया किसी ने किसी रूप में की हो चाहे वो कालाई घड़ी की मदद से गर्लफ्रेंण्‍ड की आँख चमकाकर या मोटर साइकिल की साइड मिरर में दीदार करके ही सही ।
    ये सभी क्रियायें प्रकाश के परावर्तन के कारण ही सम्‍भव है । प्रकाश के परावर्तन में प्रकाश का मूल पथ भ्रमित कर दिया जाता है या हो जाता है । प्रकाश का परावर्तन कुछ सरल नियमों के अन्‍तर्गत होती है ।
परिभाषा
    'जब कोई प्रकाश किरण एक माध्‍यम से चलकर दूसरे माध्‍यम की सतह से टकराकर वापस उसी माध्‍यम में लौट आये तो इस घटना अथवा क्रिया को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं ।'
परावर्तन के नियम

1 – आने वाले किरण (आपाती किरण),परावर्तित किरण (जाने वाली किरण) एवं अभिलम्‍ब तीनों एक ही तल में होता है ।
2– आपतन कोण (i),परावर्तन कोण (r) के बराबर होता है । अतः i = r .   इसका अर्थ यह निकलता है कि जितने कोण पर कोई प्रकाश किसी आईने पर गिरेगी उतने ही कोणी से गिरने पश्‍चात वापस चली जायेगी ।
3 – परावर्तन की क्रिया में प्रकाश की आवृत्‍ति एवं चाल परिवर्तित नहीं होती अर्थात् प्रकाश की ऊर्जा नहीं कम होती है ।
4 – नियम 2 से कहा जा सकता है कि यदि आपतन कोण शून्‍य हो तो परावर्तन कोण भी शून्‍य होगा इस स्‍थिति में प्रकाश जिस मार्ग से आती है उसी मार्ग से वापस चली जाती है । या इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि अभिलम्‍बवत् आपतन की स्‍थिति में प्रकाश अपने आगमन मार्ग से परावर्तित हो जाती है ।

व्‍यावहारिक उदाहरण
जब हम आईने में अपना चहेरा देखते है तो हमारे चेहरे से प्रकाश चलकर आईने पर गिरता है और प्रकाश आईने से परावर्तित होकर वापस उसी मार्ग से लौटकर नेत्र की रेटिना पर गिरती है जिससे हमारा चेहरा दिखाई देता है ।
मोटर साइकिलो,ट्रकों,बसों,में ड्रावर के बासे लगे साइड मिरर में भी यही क्रिया होती है अर्थात् पीछे कि या बगल की वस्‍तुएँ परावर्तन के कारण ही दिखाई देती है ।
  • answered 8 years ago
  • Sunny Solu

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