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मृदा अपरदन क्या है? इसके क्या कारण है एवं रोकथाम के उपाय | What is soil erosion? What is its reason and preventive measures

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मृदा अपरदन क्या है? इसके क्या कारण है एवं रोकथाम के उपाय | What is soil erosion? What is its reason and preventive measures.

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भूमि की ऊपरी सतह पानी या हवा के कारण एक जगह से दूसरी जगह चली जाती है जिसे मृदा अपरदन या मिट्टी का कटाव कहते हैं।  मृदा पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है जो कि जीवन बनाये रखने में सक्षम है|

मृदा का महत्त्व

वैसे तो मृदा पुरे मानव जाति के लिए जरुरी है लेकिन किसानों के लिए मृदा का बहुत अधिक महत्व होता है, क्योंकि किसान इसी मृदा से प्रत्येक वर्ष स्वस्थ व अच्छी फसल की पैदावार पर आश्रित होते हैं| बहते हुए जल या वायु के प्रवाह द्वारा मृदा के पृथक्कीकरण तथा एक स्थान से दूसर स्थान तक स्थानान्तरण को ही मृदा अपरदन से प्रभावित लगभग 150 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्रफल है जिसमें से 69 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्रफल अपरदन की गंभीर स्थिति की श्रेणी में रखा गया है| मृदा की ऊपरी सतह का प्रत्येक वर्ष अपरदन द्वारा लगभग 5334 मिलियन टन से भी अधिक क्षय हो रहा| देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 57%  भाग मृदा ह्रास के विभिन्न प्रक्ररों से ग्रस्त है| जिसका 45% जल अपरदन से तथा शेष 12% भाग वायु अपरदन से प्रभावित है|

भारत में मृदा अपरदन के मुख्य कारण :-

  •     वृक्षों का अविवेकपूर्ण कटाव
  •     वानस्पतिक फैलाव का घटना
  •     वनों में आग लगना
  •     भूमि को बंजर/खाली छोड़कर जल व वायु अपरदन के लिए प्रेरित करना|
  •     मृदा अपरदन को त्वरित करने वाली फसलों को उगाना
  •     त्रुटिपूर्ण फसल चक्र अपनाना
  •     क्षेत्र ढलान की दिशा में कृषि कार्य करना|
  •     सिंचाई की त्रुटिपूर्ण विधियाँ अपनाना

मृदा संरक्षण के उपाय

भारत में भूमि कटाव की समस्या दिन प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है| जिसका संरक्षण बहुत ही जरुरी है?

  1. समोच्च जुताई :- इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के कृषि कार्य जैसे बुआई, जुताई, भूपरिष्करण, खरपतवार नियंत्रण इत्यादि समोच्च रेखा पर किये जाते हैं| अर्थात इन कार्यों की दिशा खेत के ढाल के समानांतर न होकर लम्बवत होती है जिससे भूक्षरण में कमी आती है| इसके अंतर्गत क्यारियां बनाकर (रिज फरो सिस्टम) वर्षा जल प्रवाह को कम करके भूक्षरण को रोका जाता है|
  2. पट्टीदार खेती :- यह पद्धति भूमि की उर्वरता बढ़ाने तथा अप्रवाह एवं भूक्षरण रोकने हेतु प्रयोग में लाई जाती है| इसके अंतर्गत खेत में पट्टियाँ पर भूक्षरण अवरोधक फसल लगाईं जाती है| इस क्रम में पट्टियों पर फसलें उगाकर भूमिक्षरण को कम किया जाता है|
  3. भू-परिष्करण प्रक्रियाएं :- सामान्यतः सख्त मृदा सतह के कारण मिट्टी में जल प्रवेश कम जो जाता है जिससे जल प्रवाह को प्रोत्साहित मिलता है| अतः हल द्वारा उचित प्रकार से की गई जुताई मिट्टी को ढीली एवं पोली करके जल प्रवेश को बढ़ाती है| मृदा की जल धारण क्षमता में भी वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप अप्रवाह कम होने से भूमिक्षरण भी कम होता है| वर्षा  पूर्व जुताई करने पर नमी संरक्षण में लाभप्रद परिणाम मिलता है|
  4. वायु अवरोधक व आश्रय आवरण :- यह वानस्पतिक उपायों के अंतर्गत आते हैं तथा मुख्यतया वायु अपरदन को कम करने में सहायक होते हैं| ये वानस्पतिक उपाय मृदा सतह के पास वायु की गति को धीमा करके वायु अपरदन कम करते हैं| वानस्पतिक या यांत्रिक वायु अवरोधक वायु वेग से प्रभावित क्षेत्र को वायु अपरदन सुरक्षा प्रदान करते हैं जबकि वायु तथा पेड़ों से बना हुआ आश्रय आवरण, वायु अवरोधक की तुलना में लम्बा होने के साथ-साथ अधिक प्रभावशाली होता है|
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