महादेवी वर्मा की जीवनी (जीवन परिचय)|
महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च, 1907 को होली के दिन फरुखाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। महादेवी वर्मा अपने परिवार में कई पीढ़ियों के बाद उत्पन हुई। उनके परिवार में करीब सात पुस्तो से कोई लड़की पैदा नहीं हुई थी, अत: जब इनकी जन्म हुई तो इनके बाबा गोविंद प्रसाद वर्मा हर्ष से झूम उठे और इन्हें घर की देवी- महादेवी माना और उन्होंने इनका नाम महादेवी रखा था। महादेवी जी के माता का नाम हेमरानी देवी और पिता गोविन्द प्रसाद वर्मा थे। श्रीमती महादेवी वर्मा की एक छोटी बहन और दो छोटे भाई थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा मिशन स्कूल, इंदौर में हुई। जब ये 9 बरस की थीं, तभी इनका विवाह कर दिया गया. विवाह के वक्त वे अबोध बालिका थीं, पर बाद में भी ताउम्र वैवाहिक जीवन के प्रति ये उदासीन बनी रहीं. कारण पूरी तरह स्पष्ट नहीं, लेकिन इसके पीछे बौद्ध दर्शन का प्रभाव माना जा सकता है. विवाहोपरान्त महादेवी जी ने 1919 में बाई का बाग स्थित क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद में प्रवेश लिया और कॉलेज के छात्रावास में रहने लगीं। महादेवी जी की प्रतिभा का निखार यहीं से प्रारम्भ होता है।
महादेवी वर्मा हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के प्रमुख स्तंभों जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और सुमित्रानंदन पंत के साथ महत्वपूर्ण स्तंभ मानी जाती हैं। उन्हें आधुनिक मीरा भी कहा गया है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है। महादेवी 1929 में बौद्ध दीक्षा लेकर भिक्षुणी बनना चाहतीं थीं, लेकिन महात्मा गांधी के संपर्क में आने के बाद उन्होंने अपना जीवन समाज-सेवा में लगा दी। 1932 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए करने के पश्चात आपने नारी शिक्षा प्रसार के मंतव्य से प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की व उसकी प्रधानाचार्य के रुप में कार्यरत रही। मासिक पत्रिका चांद का अवैतनिक संपादन किया। 11 सितंबर, 1987 को इलाहाबाद (प्रयाग), उत्तर प्रदेश में महादेवी वर्मा का निधन हो गया।
सम्मान और पुरस्कार
सन 1955 में महादेवी जी ने इलाहाबाद में 'साहित्यकार संसद' की स्थापना की और पं. इला चंद्र जोशी के सहयोग से 'साहित्यकार' का संपादन सँभाला। यह इस संस्था का मुखपत्र था। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद 1952 में वे उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत की गईं। 1956 में भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक सेवा के लिए 'पद्म भूषण' की उपाधि और 1969 में 'विक्रम विश्वविद्यालय' ने उन्हें डी.लिट. की उपाधि से अलंकृत किया। इससे पूर्व महादेवी वर्मा को 'नीरजा' के लिए 1934 में 'सेकसरिया पुरस्कार', 1942 में 'स्मृति की रेखाओं' के लिए 'द्विवेदी पदक' प्राप्त हुए। 1943 में उन्हें 'मंगला प्रसाद पुरस्कार' एवं उत्तर प्रदेश सरकार के 'भारत भारती पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। 'यामा' नामक काव्य संकलन के लिए उन्हें भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' प्राप्त हुआ।
पुरस्कार सूची
1934 :सेकसरिया पुरस्कार, 1942 :द्विवेदी पदक, 1943 :मंगला प्रसाद पुरस्कार, 1943 :भारत भारती पुरस्कार, 1956 :पद्म भूषण, 1979 :साहित्य अकादेमी फेलोशिप, 1982 :ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1988 :पद्म विभूषण
काव्य
नीहार (1930), रश्मि (1932), नीरजा (1934), सांध्यगीत (1936), दीपशिखा (1942), यामा, सप्तपर्णा
गद्य
अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, मेरा परिवार
विविध संकलन
स्मारिका, स्मृति चित्र, संभाषण, संचयन, दृष्टिबोध,
पुनर्मुद्रित संकलन
यामा (1940), दीपगीत (1983), नीलाम्बरा (1983), आत्मिका (1983)
निबंध
शृंखला की कड़ियाँ, विवेचनात्मक गद्य, साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध,
ललित निबंध
क्षणदा
Biography
Rochak Jankari
Indian History
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- B Butts