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भारत के चार धाम (जगन्नाथ धाम, द्वारका धाम, बद्रीनाथ धाम, रामेश्वरम धाम) का इतिहास और कुछ रोचक जानकारी | Bharat Ke Char Dham

आइये आज हम बात करते है भारत के चार धामों के बारे में जो भारत के चारों दिशाओं में फैले हुए हैं। उत्तर में बद्रीनाथ जो उत्तराखंड राज्य में स्थित है, पश्चिम में द्वारिका जो गुजरात राज्य में स्थित है, पूर्व में जगन्नाथ पुरी स्थित है, जो उड़ीसा राज्य में है, और दक्षिण में रामेश्वरम धाम, जो तमिलनाडु राज्य में स्थित है। हमें मालूम हो की इन चरों धामों को आदि शंकराचार्य के द्वारा बारह सौ साल पहले परिभाषित किया गया था।

भारत के इन चारों धाम में से बद्रीनाथ एवं रामेश्वरम भगवान शिव को समर्पित है। इन दोनों ही मंदिरों में भगवान शिव के शिवलिंग स्थापित है, वहीँ गुजरात राज्य में स्थित द्वारिका और उड़ीसा में स्थित जगन्नाथ पुरी भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है।

 

आइये जानते है की ये चारों धाम किस मठ, किस दिशा, किस वेद, किस राज्य के अंतर्गत अता है और इन चरों धामों में कुम्भ किस जगह पर लगता है |

धाम

मठ

दिशा

वेद

कुंभ

राज्य

जगन्नाथ धाम

गोवर्धन

पूर्व

ऋग्वेद

प्रयागराज

पुरी, ओडिशा

द्वारका धाम

शारदा

पश्चिम

सामवेद

उज्जैन

द्वारका, गुजरात

बद्रीनाथ धाम

ज्योतिर्मठ

उत्तर

अथर्ववेद

हरिद्वार

उत्तराखण्ड

रामेश्वरम धाम

वेदान्त ज्ञानमठ

दक्षिण

यजुर्वेद

नाशिक

रामेश्वरम, तमिलनाडु

 

आइये जानते है जगन्नाथ पुरी धाम के बारे में

भारत के दक्षिण पूर्वी राज्य ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से थोड़ी दूरी पर स्थित जगन्नाथ मंदिर भारत के प्रमुख चार धामों में से एक है, जो भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। यह मंदिर उड़ीसा राज्य के समुद्री तट पर बसा हुआ है। इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमा भी विराजमान है।

जगन्नाथ पुरी मंदिर का निर्माण 1078 से 1148 के बीच गंग वंश के शासक अनंतवर्मन जो कलिंग पर राज करते थे, उन्होंने इस मंदिर के जगमोहन और विमान भाग का निर्माण करवाया था। 1197 में ओडिशा के शासक भीमदेव ने इस मंदिर के वर्तमान रूप का निर्माण करवाया। लेकिन 1448 में एक अफगान शासक ने ओडिशा पर आक्रमण किया और भगवान जगन्नाथ की मूर्ति और मंदिर को ध्वस्त कर दिया।

इस घटना के कुछ सालों के बाद राजा रामचंद्र ने खुर्दा में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के बाद जगन्नाथ मंदिर और इसकी मूर्तियों को दोबारा प्रस्थापित किया, उसके बाद फिर से इस मंदिर में पूजा पाठ एवं दर्शन की सुविधा शुरू हो गई।

कहा जाता है कि उड़ीसा प्राचीन काल में उत्कल प्रदेश के नाम से जाना जाता था, जो देश के समृद्ध बंदरगाहों में से एक थी। पुराणों में तो इसे धरती का वैकुंठ भी कहा गया है, जो भगवान विष्णु के चार धामों में से एक है। जगन्नाथ पुरी को जगन्नाथ पुरी के अतिरिक्त नीलगिरी, श्री पुरुषोत्तम क्षेत्र, नीलांचल और शाक क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है।

 

जगन्नाथ पुरी के बारे में कुछ रोचक बाते |

  1. जगन्नाथ पुरी मंदिर को लेकर एक रहस्य है कि इस मंदिर के शिल्प पर एक ध्वजा लहराता है, जो हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराता है और आज तक इसका रहस्य कोई ढूंढ नहीं पाया।
  2. इस मंदिर को लेकर एक रोचक तथ्य यह भी है कि इस धरती पर हर एक चीजों की परछाई का निर्माण होता है लेकिन इस मंदिर के शिखर की परछाई कभी भी धरती पर नहीं दिखाई देती, हमेशा अदृश्य रहती है।
  3. बताया जाता है कि इस मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र स्थापित है और वह सुदर्शन चक्र हर दिशा से देखने पर एक जैसा प्रतीत होता है।
  4. जगन्नाथ पुरी मंदिर बिल्कुल समुद्र तट के निकट स्थापित है। ऐसे में बाहर लहरों की आवाज खूब सुनाई देती है लेकिन इस मंदिर में प्रवेश करते ही सागर की लहरों की आवाज बिल्कुल सुनाई नहीं देती, वातावरण बिल्कुल शांत और दिव्य शक्ति से भर जाता है।
  5. कहा जाता है कि जगन्नाथपुरी मंदिर में भक्तजनों के लिए बनने वाले प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता चाहे हजार श्रद्धालु हो या लाखों श्रद्धालु प्रसाद कभी नहीं कम पड़ता। इतना ही नहीं कहा जाता है कि इस मंदिर की रसोई में जहां पर भक्तजनों के लिए प्रसाद बनता हैं, वहां पर 7 बर्तन एक दूसरे के ऊपर लदाकर प्रसाद बनाया जाता है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि सबसे नीचे वाले बर्तन का भोजन जल्दी पकना चाहिए लेकिन इसके विपरीत सबसे पहले ऊपर रखे बर्तन में भोजन पकता है। उसके बाद उसके नीचे और फिर उसके नीचे वाला भोजन पकता है, जिसका रहस्य आज तक पता नहीं चल पाया।

 

आइये जानते है द्वारकाधीश धाम मंदिर के बारे में

दूसरा धाम द्वारिकाधीश जो भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात में स्थित है, यह मंदिर गोमती नदी और अरब सागर के किनारे ओखामंडल प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर स्थित है। इस मंदिर में प्रवेश करने से पहले श्रद्धालु गोमती नदी में स्नान करते हैं।

द्वारिका मंदिर के निर्माण का इतिहास लगभग 2200 साल पुराना है। कहा जाता है कि आदि कल में द्वारिकाधीश मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के पुत्र व्रज नाथ द्वारा हरि गृह के रूप में करवाया गया था। उसके बहुत वर्षो के बाद 1472 ईसवी में मोहम्मद बेगड़ा के द्वारा इस मंजिल के मूल संरचना को नष्ट कर दिया गया था।

बाद में 15 से 16 शताब्दी में इस मंदिर का पुनः निर्माण किया गया था।

आठवीं शताब्दी के अंदर हिंदू धर्म शास्त्री आदि शंकराचार्य ने इस स्थान पर एक शारदा पीठ की भी स्थापना की थी।

यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण के साथ सुभद्रा, बलराम, वासुदेव, रेवती और अन्य कई देवी-देवताओं को समर्पित है। पुरे साल यहां पर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है लेकिन जन्माष्टमी के समय में द्वारिकाधीश मंदिर को दुल्हन की तरह सजा दिया जाता है और कई तरह के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। जिससे श्रधालुओ की भीड़ काफी ज्यादा बढ़ जाती है माहौल भक्तिमय और रमणीय हो जाते है।

एक पैराणिक कथा में कहा जाता है की भगवान श्री कृष्ण के द्वारा निर्माण की गई वास्तविक द्वारिका समुद्र में डूबी हुई है, बताया जाता है कि द्वारिका नगरी स्थापित करने के बाद भगवान श्री कृष्ण अपने 18 कुल बंधुओं के साथ द्वारिका में बस गए थे और यहां पर इन्होंने बहुत वर्षों तक राज्य किये थे |

लेकिन कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के समय जब कौरव कुल का नाश हो गया था तब कौरव कुल की माता गांधारी ने भगवान श्रीकृष्ण को पांडवो पक्ष का समर्थन करने के कारण उन्हें श्राप दिया था कि जिस तरीके से मेरे कुल वंश का नाश हुआ है, ठीक उसी प्रकार तुम्हारे कुल वंश का विनाश हो जाएगा।

जिसके कारण भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु के पश्चात उनके सभी यदुवंशी कुल समाप्त हो जाते हैं और उसी के पश्चात द्वारिका नगरी भी समुद्र में डूब कर समाप्त हो जाती हैं। हालांकि अभी तक इस बात पर पूरी तरीके से शोध नहीं हो पाया है। पर अभी भी समुद्र के अंदर कई विभिन्न अवशेष मिले हैं, जिन पर लगातार शोध हो रहा है।

 

द्वारिकाधीश धाम के बारे में कुछ रोचक बाते |

  1. द्वारिकाधीश मंदिर का निर्माण चालुक्य शैली में किया गया है, जो 5 मंजिले मंजिल की सरंचना है। जिसका निर्माण चूना पत्थर और रेत से किया गया है।
  2. द्वारिकाधीश का 5 मंजिला मंदिर 72 स्तंभ एवं 78.3 मिटर ऊंचे और जटिल नकाशी दार शिखर पर बनाए गए हैं।
  3. द्वारिकाधीश मंदिर के शीर्ष पर 75 फीट ऊंचा ध्वज विराजमान है, जिसे भक्त सूर्य और चंद्रमा का प्रतीक मानते हैं। कहा जाता है सूर्य और चंद्रमा भगवान श्री कृष्ण के मंदिर प्रशासन करते हैं, इस ध्वज को दिन भर में कम से कम 5 बार बदला जाता है।
  4. द्वारकाधीश मंदिर के गर्भ गृह में भगवान श्रीकृष्ण की श्याम वर्ण चतुर्भुज प्रतिमा चांदी के सिंहासन पर विराजमान है।

 

आइये जानते है बद्रीनाथ धाम मंदिर के बारे में


बद्रीनाथ धाम भारत के उत्तरी राज्य उत्तराखंड में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है, यह हिंदू देवता विष्णु को समर्पित मंदिर है और यह स्थान इस धर्म में वर्णित सर्वाधिक पवित्र स्थानों, चार धामों, में से एक है |  यह एक प्राचीन मंदिर है बद्रीनाथ धाम को भारत के प्रमुख चार धामों में से एक माना गया है। यह मंदिर हिमालय पर्वत में स्थित होने के कारण यहां पर साल भर ठंड रहती है, यही कारण है कि साल में केवल 6 महीने तक ही यह मंदिर खुले रहते हैं और 6 महीने वर्फ से ढकी रही है। अप्रैल से नवंबर तक यह मंदिर यात्रियों के लिए खुला रहता है। बद्रीनाथ मंदिर भारत के लगभग सबसे व्यस्त और प्राचीन मंदिर में से एक होने के कारण  यहां पर हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।

बद्रीनाथ मंदिर को लेकर एक पौराणिक मानयता है कि एक समय इस स्थान पर घने बद्री यानी कि बेर के वृक्ष हुआ करते थे, जिस कारण इस जगह का नाम बद्रीनाथ पड़ा था।  मान्यता है की  देवताओं ने यहां पर बदरीनाथ की मूर्ति स्थापित कर दी। लेकिन आठवीं सदी तक यह स्थान बौद्ध मठ था, जब बौद्ध लोगों को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने उस मूर्ति को अलकनंदा नदी में बहा दिया। लेकिन बाद में आदि शंकराचार्य ने उस मूर्ति को खोज कर तप्त कुंड के पास स्थित गुफा में स्थापित किया। और 19वीं शताब्दी ईस्वी में आदि शंकराचार्य ने बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। कहा जाता है आदि शंकराचार्य स्वयं 6 सालों तक 6 महीने बद्रीनाथ एवं छह महीने केदारनाथ में रहते थे।

कहा जाता है कि बिना बद्रीनाथ के दर्शन के केदारनाथ की यात्रा अधूरी है। इसीलिए केदारनाथ की यात्रा करने वाले तीर्थयात्री सबसे पहले बद्रीनाथ की यात्रा करते हैं। यह मंदिर गढ़वाल क्षेत्र के बीच 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

 

बद्रीनाथ धाम के बारे में कुछ रोचक बाते |

  1. आज भी इस मंदिर की देखरेख और कार्यभार केरल के ब्राह्मणों के अंतर्गत ही होता है। कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने दक्षिण भारत के केरल पुजारियों को इस मंदिर में पूजा के लिए नियुक्त किया था|  बदरीनाथ और केदारनाथ के पुजारियों को रावल कहा जाता है। रावल शंकराचार्य के वंशज हैं। इसलिए पूजा का अध‍िकार भी उन्‍हीं के कुल को यान‍ि की रावलों को दिया गया।
  2. बद्रीनाथ मंदिर के नीचे एक कुंड स्थित है, जिसे गर्म चश्मा के नाम से जाना जाता है। इस कुंड का पानी का तापमान साल भर 55 डिग्री सेल्सियस रहता है। लेकिन बाहरी तापमान 17 डिग्री सेल्सियस के नीचे होता है। हालांकि पानी खोलते हुए नजर आता है लेकिन यह उतना गर्म नहीं रहता। माना जाता है कि इस पानी में औषधिय गुण है। यह पानी सल्फर युक्त है, जिस कारण जो भी इस पानी में स्नान करता है, वह रोगमुक्त हो जाता है। इसीलिए बद्रीनाथ मंदिर की पूजा करने से पहले लोग इस कुंड में पहले स्नान करते हैं।
  3. बद्रीनाथ मंदिर साल में केवल 6 महीने तक ही खुला रहता है। ऐसे में 6 महीने जब यह मंदिर बंद रहता है तो मंदिर में एक अखंड ज्योति जलाई जाती है, जो लगभग 6 महीनों तक जलते ही रहती हैं।
  4. बद्रीनाथ को लेकर एक बहुत ही रोचक तथ्य है कि इस मंदिर में शंख नहीं बजाए जाते हैं, जिसके कई कारण है। इसके पीछे धार्मिक मान्यता यह है कि एक बार मां लक्ष्मी बद्रीनाथ में बने तुलसी भवन में ध्यान लगा रही थी और उसी दौरान भगवान विष्णु शंख चूर्ण नाम के एक राक्षस का वध किए थे, जिस के पश्चात शंखनाद किया जाता है। लेकिन भगवान विष्णु मां लक्ष्मी के ध्यान को विघ्ने नहीं करना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने शंख नहीं बजाया। जिस कारण आज भी बद्रीनाथ में पूजा के दौरान शंख नहीं बनाए जाते हैं।
  5. हालांकि इसका वैज्ञानिक कारण यह बताया जाता है कि बद्रीनाथ पहाड़ी इलाकों में स्थित है और वहां पर साल भर ठंड रहती है। ऐसे में शंखनाद करने से ध्वनि पहाड़ों से टकराकर प्रतिध्वनि पैदा कर सकती है। पहाड़ी इलाका होने के कारण इस ध्वनि से लैंडस्लाइड भी हो सकता है, इसलिए यहां पर शंख नहीं बजाए जाते हैं।

 

आइये जानते है रामेश्वरम धाम मंदिर के बारे में|


भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में स्थित रामेश्वरम मंदिर भारत के चार प्रमुख स्थानों में से एक है। इसे अंतिम धाम माना जाता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है एवं भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

मान्यता है की रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना स्वयं श्री राम में अपने हाथो से किये थे, रामेश्वरम मंदिर के बारे में पौराणिक मान्यता है कि रावण वध करने के पश्चात भगवान श्री राम एक ब्राह्मण के वध करने का दोष मिटाना चाहते थे। इसीलिए भगवान श्रीराम चाहते थे कि वे इस दोष को खत्म करने के बाद ही अयोध्या जाए।

श्री लंका से लौटने के बाद तमिलनाडु में पहुंचने पर उन्होंने भगवान शिव की पूजा करनी चाही लेकिन, इस द्विप पर कोई भी मंदिर नहीं था। इसलिए इन्होंने भगवान हनुमान को कैलाश से भगवान शिव की प्रतिमा लाने के लिए कहा। जिसके बाद हनुमान जी प्रतिमा लाने के लिए कैलाश चले जाते हैं। लेकिन हनुमान जी को वापस लौटने में बहुत ज्यादा वक्त लग जाता है और इधर शुभ मुहूर्त का समय भी जा रहा था, जिसके बाद मां सीता स्वयं समुद्र के रेत को मुट्ठी में लेकर शिवलिंग का निर्माण कि, फिर भगवान राम उसी शिवलिंग की पूजा किये। बाद में जब हनुमान जी कैलाश से शिव की प्रतिमा लाते हैं तो उन्हें इस बात का बहुत दुख होता है कि भगवान राम ने उनका इंतजार नहीं किया। उनके इस दुःख भाव को देख भगवान श्री राम हनुमान के द्वारा लाए गए शिवलिंग को माता सीता के द्वारा बनाए गए शिवलिंग के बगल में ही स्थापित कर देते हैं और घोषणा करते हैं कि भविष्य में रामेश्वर की पूजा करने से पहले लोग हनुमान के द्वारा लाए गए शिवलिंग की पूजा करें। इस तरीके से माना जाता है कि तभी से इस स्थान को रामेश्वरम एवं रामेश्वर द्वीप के नाम से जाना जाने लगा।

बताया जाता है कि लगभग 15वीं शताब्दी में राजा उडैयान सेतुपति एवं नागूर निवासी वैश्य ने यहां पर 78 फीट ऊंचा गोपुरम का निर्माण करवाया। उसके बाद सोलवीं सदी में तिरुमलाई सेतुपति नाम के राजा ने मंदिर के दक्षिण में दूसरे हिस्से की दीवार का निर्माण पूरा करवाया था।

बताया जाता है कि वर्तमान रामेश्वरम मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में राजा किजहावन सेठुपति या रघुनाथ किलावन ने करवाया था। रामेश्वरम मंदिर के निर्माण में द्रविड़ स्थापत्य शैली का प्रयोग किया गया है। मंदिर में सैकड़ों विशाल खंबे हैं और प्रत्येक खंभे पर विभिन्न तरह के बारीकी कलाकृतियां बनाई गई है। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण इस मंदिर का 40 फीट ऊंचा प्रवेश द्वार है। मंदिर के गर्भ में दो शिवलिंग है। प्रथम माता सीता के द्वारा रेत से बनाया गया शिवलिंग, जिन्हें मुख्य देवता माना जाता है। उसी के बगल में भगवान हनुमान के द्वारा लाया गया शिवलिंग स्थापित है। इस शिवलिंग को विश्व लिंगम के नाम से जाना जाता है। वहीँ माता सीता के द्वारा बनाए गए शिवलिंग को रामलिंगम के नाम से जाना जाता है।

रामेश्वरम मंदिर के बारे में कुछ रोचक बाते |

  1. कहा जाता है कि रामेश्वरम मंदिर के निर्माण में उपयोग किए गए पत्थरों को श्रीलंका से नावों के द्वारा लाया गया था।
  2. रामेश्वरम मंदिर लगभग हजार फुट लंबा और 650 फुट चौड़ा है।
  3. रामेश्वरम का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा माना जाता है, जो उत्तर दक्षिण में 197 मीटर एवं पूर्व पश्चिम में 133 मीटर फैला हुआ है एवं इसके परकोटो की चौड़ाई 6 मीटर और ऊंचाई 9 मीटर है।
  4. इस मंदिर के अंदर 22 तीर्थ है और प्रत्येक तीर्थ अपने आप में प्रसिद्ध है। मंदिर के पहले और सबसे मुख्य अतिंम को अग्नि तीर्थ कहा जाता है।
  5. रामेश्वरम मंदिर के अंदर कई सारे कुंवे बने हैं और कहा जाता है कि इन कुओं का निर्माण भगवान राम ने अपने अमोघ बाणो से किया था और उसमें कई तीर्थ स्थलों का जल छोड़ा था। आश्चर्य की बात है कि पूरे रामेश्वरम में खारा पानी मिलता है लेकिन इन 22 कुओं का पानी मीठा है।
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