आस्था का लोक महापर्व छठ, एवं उनसे जुड़ी पौराणिक कथा
आस्था का लोक महापर्व छठ
भारत में छठ एक ऐसा त्यौहार है जिसको बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। हमारे हिंदू धर्म में ज्यादातर त्योहारों में मूर्तियों की पूजा की जाती है, लेकिन वही छठ पर्व में मूर्ति की पूजा नहीं होती है, बल्कि छठ के पर्व में सूर्य, उषा, प्रकृति, जल, और वायु पूजा होती है। छठ का त्यौहार भारत के ज्यादातर हिस्सों में मनाया जाता है, इस त्यौहार के दिन स्त्रियां छठ मैया का पूजा करती हैं। वहीं कई जगहों पर छठ का पर्व मुस्लिम बिरादरी के लोग भी मनाते हैं। यह त्यौहार बिहार उत्तर प्रदेश में बहुत ज्यादा प्रचलित है। आपको बता दें छठ के पर्व में स्त्रियां 2 या 3 दिन तक व्रत रहती हैं। छठ एक ऐसा त्यौहार है जो वैदिक काल से चला आ रहा है। और इस त्यौहार को मनाने वाले भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में भी लोग हैं। यह त्यौहार खासकर इस स्त्रियों के लिए बहुत महत्व रखता है।
छठ सूर्य उपासना और छठी माता की उपासना का पर्व है। हिन्दू आस्था का यह एक ऐसा पर्व है जिसमें मूर्ति पूजा शामिल नहीं है। इस पूजा में छठी मईया के लिए व्रत किया जाता है। वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी छठ पर्व का बड़ा महत्व है।
उत्तर प्रदेश और खासकर बिहार में छठ का विशेष महत्व है। छठ सिर्फ एक पर्व नहीं है, बल्कि महापर्व है, जो पूरे चार दिन तक चलता है। नहाए-खाए से इसकी शुरुआत होती है, जो डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होती है। ये पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को 'चैती छठ' और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को 'कार्तिकी छठ' कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए ये पर्व मनाया जाता है।
छठ से जुड़ी पौराणिक कहानी
माता सीता ने भी की थी सूर्यदेव की पूजा
छठ पूजा की परंपरा कैसे शुरू हुई, इस संदर्भ में कई कथाएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया और सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
महाभारत काल से हुई थी छठ पर्व की शुरुआत
हिंदू मान्यता के मुताबिक, कथा प्रचलित है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था। कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।
द्रोपदी में भी रखा था छठ व्रत
छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इस किवदंती के मुताबिक, जब पांडव सारा राजपाठ जुए में हार गए, तब द्रोपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई।
क्या है छठ का पौराणिक महत्व
इन कथाओं के अलावा एक और किवदंती भी प्रचलित है। पुराणों के अनुसार, प्रियव्रत नामक एक राजा की कोई संतान नहीं थी। इसके लिए उसने हर जतन कर कर डाले, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तब उस राजा को संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने उसे पुत्रयेष्टि यज्ञ करने का परामर्श दिया। यज्ञ के बाद महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मरा पैदा हुआ। राजा के मृत बच्चे की सूचना से पूरे नगर में शोक छा गया। कहा जाता है कि जब राजा मृत बच्चे को दफनाने की तैयारी कर रहे थे, तभी आसमान से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा। इसमें बैठी देवी ने कहा, 'मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं।' इतना कहकर देवी ने शिशु के मृत शरीर को स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो उठा। इसके बाद से ही राजा ने अपने राज्य में यह त्योहार मनाने की घोषणा कर दी।
छठ पूजा का प्रारंभ कब से हुआ सूर्य की आराधना कब से प्रारंभ हुई इसके बारे में पौराणिक कथाओं में बताया गया है।
छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा विधि विधान से की जाती है। छठ पूजा का प्रारंभ कब से हुआ, सूर्य की आराधना कब से प्रारंभ हुई, इसके बारे में पौराणिक कथाओं में बताया गया है। सतयुग में भगवान श्रीराम, द्वापर में दानवीर कर्ण और पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने सूर्य की उपासना की थी। छठी मैया की पूजा से जुड़ी एक कथा राजा प्रियवंद की है, जिन्होंने सबसे पहले छठी मैया की पूजा की थी। आइए जानते हैं कि सूर्य उपासना और छठ पूजा का इतिहास और कथाएं क्या हैं।
1. राजा प्रियवंद ने पुत्र के प्राण रक्षा के लिए की थी छठ पूजा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियवंद नि:संतान थे, उनको इसकी पीड़ा थी। उन्होंने महर्षि कश्यप से इसके बारे में बात की। तब महर्षि कश्यप ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। उस दौरान यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा प्रियवंद की पत्नी मालिनी को खाने के लिए दी गई। यज्ञ के खीर के सेवन से रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मृत पैदा हुआ था। राजा प्रियवंद मृत पुत्र के शव को लेकर श्मशान पहुंचे और पुत्र वियोग में अपना प्राण त्याग लगे।
उसी वक्त ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा प्रियवंद से कहा, मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं, इसलिए मेरा नाम षष्ठी भी है। तुम मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार-प्रसार करो। माता षष्ठी के कहे अनुसार, राजा प्रियवंद ने पुत्र की कामना से माता का व्रत विधि विधान से किया, उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी थी। इसके फलस्वरुप राजा प्रियवद को पुत्र प्राप्त हुआ।
2. श्रीराम और सीता ने की थी सूर्य उपासना
पौराणिक कथा के अनुसार, लंका के राजा रावण का वध कर अयोध्या आने के बाद भगवान श्रीराम और माता सीता ने रामराज्य की स्थापना के लिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रखा था और सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी।
3. द्रौपदी ने पांडवों के लिए रखा था छठ व्रत
पौराणिक कथाओं में छठ व्रत के प्रारंभ को द्रौपदी से भी जोड़कर देखा जाता है। द्रौपदी ने पांच पांडवों के बेहतर स्वास्थ्य और सुखी जीवन लिए छठ व्रत रखा था और सूर्य की उपासना की थी, जिसके परिणामस्वरुप पांडवों को उनको खोया राजपाट वापस मिल गया था।
4. दानवीर कर्ण ने शुरू की सूर्य पूजा
महाभारत के अनुसार, दानवीर कर्ण सूर्य के पुत्र थे और प्रतिदिन सूर्य की उपासना करते थे। कथानुसार, सबसे पहले कर्ण ने ही सूर्य की उपासना शुरू की थी। वह प्रतिदिन स्नान के बाद नदी में जाकर सूर्य को अर्घ्य देते थे।
कैसे मनाया जाता है छठ ?
छठ सूर्य उपासना और छठी माता की उपासना का पर्व है। हिन्दू आस्था का यह एक ऐसा पर्व है जिसमें मूर्ति पूजा शामिल नहीं है। इस पूजा में छठी मईया के लिए व्रत किया जाता है। वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी छठ पर्व का बड़ा महत्व है।
नहाए-खाए से हो जाती है, छठ पूजा की शुरुआत
छठ पूजा में पहले दिन को नहाए-खाए के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं और पुरुष एक समय का भोजन करके अपने मन को शुद्ध करते हैं। इस दिन से घर में शुद्धता का बहुत ध्यान रखा जाता है, और लहसुन-प्याज़ बनाने की मनाही हो जाती है। नहाए-खाए वाले दिन व्रती महिलाएं लौकी की सब्ज़ी, चने की दाल, चावल और मूली खाती हैं।
दूसरे दिन रखते हैं, पूरे दिन का उपवास
छठ पूजा में दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन का उपवास रखती हैं। खरना का मतलब होता है, शुद्धिकरण। खरना के दिन शाम होने पर गुड़ की खीर का प्रसाद बना कर व्रती महिलाएं पूजा करने के बाद अपने दिन भर का उपवास खोलती हैं। फिर इस प्रसाद को सभी में बांट दिया जाता है। इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है। इस दिन प्रसाद बनाने के लिए नए मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी का प्रयोग करना शुभ माना जाता है।
संध्या अर्घ्य में करते है, सूर्य की उपासना
तीसरे दिन शाम के समय डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है, जिसकी वजह से इसे संध्या अर्घ्य कहा जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं भोर में सूर्य निकलने से पहले रात को रखा मिश्री-पानी पीती हैं। उसके बाद अगले दिन अंतिम अर्ध्य देने के बाद ही पानी पीना होता है। संध्या अर्घ्य के दिन विशेष प्रकार का पकवान ठेकुवा और मौसमी फल सूर्य देव को चढाए जाते हैं, और उन्हें दूध और जल से अर्घ्य दिया जाता है। इस साल 20 नवंबर को संध्या अर्घ्य दिया जायेगा।
उगते सूर्य के अर्घ्य के साथ संपन्न होती है छठ पूजा
चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अंतिम अर्घ्य दिया जाता है। व्रत रखने वाली महिलाएं और पुरुष छठी मईया और सूर्य देव से अपने संतान और पूरे परिवार की सुख-शांति और उन पर अपनी कृपा बनाये रखने की प्रार्थना करती हैं। इसके बाद व्रती घर के देवी-देवता की पूजा करते हैं, और फिर प्रसाद को खाकर व्रत का समापन करते हैं।
छठ पूजा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
छठ पूजा धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का लोकपर्व है। यही एक मात्र ऐसा त्यौहार है जिसमें सूर्य देव का पूजन कर उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। हिन्दू धर्म में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है। वे ही एक ऐसे देवता हैं जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से देखा जाता है। वेदों में सूर्य देव को जगत की आत्मा कहा जाता है। सूर्य के प्रकाश में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है। सूर्य के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को आरोग्य, तेज और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। वैदिक ज्योतिष में सूर्य को आत्मा, पिता, पूर्वज, मान-सम्मान और उच्च सरकारी सेवा का कारक कहा गया है। छठ पूजा पर सूर्य देव और छठी माता के पूजन से व्यक्ति को संतान, सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। सांस्कृतिक रूप से छठ पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है इस पर्व की सादगी, पवित्रता और प्रकृति के प्रति प्रेम।
खगोलीय और ज्योतिषीय दृष्टि से छठ पर्व का महत्व
वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी छठ पर्व का बड़ा महत्व है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर, जिस समय सूर्य धरती के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित रहता है। इस दौरान सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती है। इन हानिकारक किरणों का सीधा असर लोगों की आंख, पेट व त्वचा पर पड़ता है। छठ पर्व पर सूर्य देव की उपासना व अर्घ्य देने से पराबैंगनी किरणें मनुष्य को हानि न पहुंचाए, इस वजह से सूर्य पूजा का महत्व बढ़ जाता है।
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