भगवान श्री चित्रगुप्त की उत्त्पति एवं महत्व, तथा पूजा विधि एवं कथा, आरती एवं स्तुति
भगवान श्री चित्रगुप्त की उत्त्पति एवं महत्व
चित्रगुप्त देवताओं के लेखापाल हैं और मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं। उनकी पूजा के दिन नई कलम दवात या लेखनी की पूजा उनके प्रतिरूप के तौर पर की जाती है। लेखनी की पूजा से वाणी और विद्या का वरदान मिलता है। कायस्थ या व्यापारी वर्ग के लिए चित्रगुप्त पूजा दिन से ही नववर्ष का आगाज माना जाता है। इस दिन व्यापारी नए बही खातों की पूजा करते है। नए बहीखातों पर 'श्री' लिखकर कार्य प्रारंभ किया जाता है।
- भागवान चित्रगुप्त चित्रांशों के आराध्य देव हैं। पर वे सभी के लेखनी की इच्छा-कामना को सहज ही पूर्ण करते हैं। ऐसे तो चित्रांश सहित कितने ही जन देव श्री चित्रगुप्त की नित्य आराधना किया करते हैं, पर हर वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को इनका वार्षिक उत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। पद्य पुराण, स्कन्द पुराण, बह्मपुराण, यमसंहिता व याज्ञवलक्य स्मृति सहित कई धार्मिक ग्रंथों में भगवान चित्रगुप्त का विवरण आया है। भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी की काया से हुई है। ब्रह्मा जी की काया से संबंध होने के कारण इस वंश को कायस्थ कहा गया। चित्रगुप्त महाराज देवताओं के लेखपाल यानी मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा करने वाले हैं। चित्रगुप्त जी की उत्पत्ति की एक और कथा है कि देवताओं और असुरों ने अमृत के लिए समुद्र मंथन किया था, तो उसमें कुल 14 रत्नों की प्राप्ति हुई थी। उसी में लक्ष्मी जी के साथ चित्रगुप्त जी की भी उत्पत्ति हुई थी। मान्यता है कि भगवान चित्रगुप्त ने ज्वालामुखी, चण्डी देवी व महिषासुर मर्दिनी की पूजा-अर्चना और साधना कर एक आदर्श कायम किया था। देवलोक में भगवान चित्रगुप्त की प्रतिष्ठा धर्मराज के रूप में है।
- चित्रगुप्त कायस्थ समाज के देवता हैं | कायस्थ समाज में इनकी जयंती उत्साह के साथ मनाई जाती हैं | चित्रगुप्त मृत्यु के देवता यमराज के सहायक कहे जाते हैं | वास्तव में यह यमराज के भाई हैं इन्हें मनुष्य के कर्मो का हिसाब किताब रखने का कार्य दिया गया हैं | यह जीवन के अंत में मनुष्य के कर्मो का हिसाब कर उसे स्वर्ग अथवा नरक में भेजते हैं |
- भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल पर ब्रह्मा जी का जन्म हुआ इन्हें श्रृष्टि का सृजन करने का कार्य मिला | जिस कारण इन्होने देवी देवता सुर असुर एवम धर्मराज आदि उत्पन्न किये | इन्ही में संसार को गतिशील बनाने हेतु यमराज का जन्म किया, जिन्हें मृत्यु का स्वामी बनाया गया | इस कार्य का भार अधिक था, जिसके लिए यमराज ने एक सहायक की मांग की | तब ब्रह्मा जी ने हजार वर्षो तक तपस्या की और उनकी काया से पुरुष का जन्म हुआ.
हिन्दू मान्यता के अनुसार ब्रम्हा जी ने अपने शरीर के अलग अलग हिस्सों से पहले 16 पुत्रों को जन्म दिया, और फिर इसके बाद अपने पेट से भगवान चित्रगुप्त का जन्म किया. जिस कारण उनका नाम चित्रगुप्त पड़ा|
इस प्रकार अधिक मास के वर्ष में कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वीज को चित्र गुप्त का जन्म हुआ, इसलिए इसे चित्र गुप्त जयंती के रूप में प्रति वर्ष भाई दूज के दिन मनाया जाता हैं| - हिन्दू धारण के अनुसार मनुष्य के जीवन में बहुत से जीवन काल चलते है, जिसमें पुनर जनम का भी बहुत रहस्य जुड़ा हुआ है. ऐसा माना जाता है कि जो लोग अपने जन्मकाल के समय अच्छे कामों और बुरे कामों के बीच संतुलन नहीं बना पाते है, उन्हें पृथ्वी में किसी भी रूप में पुनर जन्म लेकर अपने जीवन काल को पूरा करना होता है. चित्रगुप्त जी का पहला कार्य यह है कि उन्हें सभी मनुष्यों के जीवन का लेखा जोखा रखना पड़ता है, मनुष्यों को उनके जीवन की अच्छाई बुराई के अनुसार जज करते है और फिर उनकी मृत्यु का समय निर्धारित होता है.
- चित्रगुप्त देव का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ अतएव उन्हें कायस्थ कहा जाता हैं | उनसे उत्पन्न मानव कायस्थ कहलाते हैं | इन्हें कायस्थ का जन्मदाता कहा जाता हैं |
- चित्रगुप्त एक लेखक कहे जाते हैं जो मनुष्य के जीवन का सार विस्तार लिखते हैं इनके चित्र में इनके एक हाथ में किताब हैं, जिसमे मनुष्य के कर्मो का ब्यौरा हैं, दुसरे हाथ में कलम हैं और अन्य में दावत एवम करवाल हैं | इस तरह यह मनुष्य के कर्मो के लेखा के लिए सदैव सज्ज रहते हैं और उसके अनुसार उसकी नियति तय करते हैं |
- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कायस्थ जाति को उत्पन्न करने वाले भगवान चित्रगुप्त का जन्म यम द्वितीया के दिन हुआ। इसी दिन कायस्थ जाति और कलमजीवी लोग अपने घरों में भगवान चित्रगुप्त की पूजा करते हैं। उन्हें मानने वाले इस दिन कलम और दवात का इस्तेमाल नहीं करते।
जीवात्मा के कर्मों का लेखा जोखा रखने वाले भगवान हैं चित्रगुप्त। भगवान चित्रगुप्त जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त जीवों के सभी कर्मों को अपनी पुस्तक में लिखते रहते हैं और जब जीवात्मा मृत्यु के पश्चात यमलोक में पहुचता है तो उनके कर्मों के अनुसार स्वर्ग और नर्क में भेज देते हैं। भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और जल है । ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलती है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है।
चित्रगुप्त जी महाराज के 12 पुत्र के नाम
1. |
श्रीवास्तव |
2. |
माथुर |
3. |
गौर |
4. |
निगम |
5. |
अष्ठाना |
6. |
कुलश्रेष्ठ |
7. |
सुर्यद्वाजा |
8. |
भटनागर |
9. |
अम्ब्स्था |
10. |
सक्सेना |
11. |
कराना |
12. |
वाल्मीकि |
भगवान श्री चित्रगुप्त की पूजा विधि एवं कथा
हिन्दी पंचांग के अनुसार, दिवाली के तीसरे दिन यानी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को जहां देशभर में भाई दूज या भैया दूज का पर्व मनाया जाता है वहीं कायस्थ परिवार के देवता चित्रगुप्त महाराज का भी पूजा का विधान है। यम द्वितीया को मनाया जाने वाला ये पर्व कलम दवात की पूजा के नाम से भी प्रचलित है। चित्रगुप्त महाराज को देवगण का लेखपाल यानी मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने वाला माना गया है। इस दिन नई लेखनी या कलम की पूजा होती है, इसलिए इस दिन कलम और दवात का इस्तेमाल नहीं किया जाता।कायस्थ, व्यापारी या कारोबारी वर्ग इसे नववर्ष प्रारंभ के तौर पर भी देखते हैं।
मान्यता है कि इस दिन कायस्थ समाज का हर सदस्य कलम से कागज पर अपनी सालाना आय लिखकर, एक मंत्र के साथ वो कागज चित्रगुप्त महाराज के पास रख देता है। उसके बाद पूरी पूजा विधि अपनाई जाती है और आरती व विशेष प्रसाद चरणामृत के साथ ये चित्रगुप्त पूजा संपन्न होती है।
जो भी प्राणी धरती पर जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है क्योंकी यही विधि का विधान है। विधि के इस विधान से स्वयं भगवान भी नहीं बच पाये और मृत्यु की गोद में उन्हें भी सोना पड़ा। चाहे भगवान राम हों, कृष्ण हों, बुध और जैन सभी को निश्चित समय पर पृथ्वी लोक आ त्याग करना पड़ता है। मृत्युपरान्त क्या होता है और जीवन से पहले क्या है यह एक ऐसा रहस्य है जिसे कोई नहीं सुलझा सकता। लेकिन जैसा कि हमारे वेदों एवं पुराणों में लिखा और ऋषि मुनियों ने कहा है उसके अनुसार इस मृत्युलोक के उपर एक दिव्य लोक है जहां न जीवन का हर्ष है और न मृत्यु का शोक वह लोक जीवन मृत्यु से परे है।
इस दिव्य लोक में देवताओं का निवास है और फिर उनसे भी ऊपर विष्णु लोक, ब्रह्मलोक और शिवलोक है। जीवात्मा जब अपने प्राप्त शरीर के कर्मों के अनुसार विभिन्न लोकों को जाता है। जो जीवात्मा विष्णु लोक, ब्रह्मलोक और शिवलोक में स्थान पा जाता है उन्हें जीवन चक्र में आवागमन यानी जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है और वे ब्रह्म में विलीन हो जाता हैं अर्थात आत्मा परमात्मा से मिलकर परमलक्ष्य को प्राप्त कर लेता है।
जो जीवात्मा कर्म बंधन में फंसकर पाप कर्म से दूषित हो जाता हैं उन्हें यमलोक जाना पड़ता है। मृत्यु काल में इन्हे आपने साथ ले जाने के लिए यमलोक से यमदूत आते हैं जिन्हें देखकर ये जीवात्मा कांप उठता है रोने लगता है परंतु दूत बड़ी निर्ममता से उन्हें बांध कर घसीटते हुए यमलोक ले जाते हैं। इन आत्माओं को यमदूत भयंकर कष्ट देते हैं और ले जाकर यमराज के समक्ष खड़ा कर देते हैं। इसी प्रकार की बहुत सी बातें गरूड़ पुराण में वर्णित है।
यमराज के दरवार में उस जीवात्मा के कर्मों का लेखा जोखा होता है। कर्मों का लेखा जोखा रखने वाले भगवान हैं चित्रगुप्त। यही भगवान चित्रगुप्त जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त जीवों के सभी कर्मों को अपनी पुस्तक में लिखते रहते हैं और जब जीवात्मा मृत्यु के पश्चात यमराज के समक्ष पहुँचता है तो उनके कर्मों को एक एक कर सुनाते हैं और उन्हें अपने कर्मों के अनुसार क्रूर नर्क में भेज देते हैं।
कौन हैं भगवान चित्रगुप्त?
भगवान चित्रगुप्त ब्रह्मदेव की संतान हैं। ये ज्ञान के देवता हैं। यमलोक के राजा यमराज को कर्मों के आधार पर जीव को दंड या मुक्ति देने में कोई समस्या न हो, इसलिए चित्रगुप्त भगवान हर व्यक्ति के कर्मों का लेखा-जोखा लिखकर, यमदेव के कार्यों में सहायता प्रदान करते हैं। चित्रगुप्तजी का जन्म ब्रह्मदेव के अंश से न होकर संपूर्ण काया से हुआ था इसलिए चित्रगुप्त जी को कायस्थ कहा गया। इसी उपनाम के आधार पर इनका गोत्र चला और समाज में कायस्थ वर्ग की भागीदारी शुरू हुई। चित्रगुप्तजी की दो पत्नियां थी। जिनमें एक ब्राह्मण थीं और दूसरी क्षत्रिय। इसी कारण कायस्थों में ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों की खूबियां पाई जाती हैं।
कायस्थ आज के दिन भगवान चित्रगुप्त के साथ ही कलम और बहीखाते की भी पूजा करते हैं। क्योंकि ये दोनों ही भगवान चित्रगुप्त को प्रिय हैं।भगवान चित्रगुप्त की बही 'अग्रसन्धानी' में प्रत्येक जीव के पाप-पुण्य का हिसाब लिखा हुआ है। इसके साथ ही अपनी आय-व्यय का ब्योरा और घर परिवार के बच्चों के बारे में पूरी जानकारी लिखकर भगवान चित्रगुप्त को अर्पित की जाती है। एक प्लेन पेपर पर अपनी इच्छा लिखकर पूजा के दौरान भगवान चित्रगुप्त के चरणों में अर्पित करते हैं। चित्रगुप्त पूजा की रस्में मुख्य रूप से पुरुषों द्वारा निभाई जाती हैं और पूरा परिवार साथ में पूजन करता है।
दावात पूजा की तैयारी कैसे करें ? :-
- दावात पूजा को कलम-दावात-पुस्तक एवं पढ़ने-लिखने से जुड़ी सारी उपयोगी वस्तुओं जैसे पेंसिल, चॉक, स्लेट, कॉपी-रजिस्टर, कागज आदि जरूर लेना चाहिए।
- पांच प्रकार के मौसली फलों से दावात पूजा को भगवान चित्रगुप्त की पूजा करनी चाहिए।
- चंदन, हल्दी, कुमकुम, वस्त्र, अक्षत, दूर्वा, पुष्प, फल, मिठाई, शक्कर, पंचामृत के लिए सामान, मेवा, पान, सुपारी, इलायची, आम का पल्लव, हवन के लिए सामग्री आदि रख लें।
- पूजा स्थान को साफ करके एक चौकी या पीढ़े पर कपड़ा वस्त्र बिछाकर श्रीचित्रगुप्तजी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- उसके बाद दीपक जलाकर श्रीगणेशजी का आह्वान करें और पंचोपचार पूजन करें।
- भगवान को मुख्य रूप से चन्दन, हल्दी, रोली, अक्षत, दूब, पुष्प व धूप अर्पित कर पूजा की जाती है जिसके मंत्र बहुत सरल हैं।
- यदि पंचोपचार पूजन करने में असमर्थ हैं तो उपलब्ध पूजा सामग्रियों (कुमकुम, अक्षत, पुष्प, फल, मेवा आदि ) में से कुछ अंश सबसे पहले गणेशजी के नाम से समर्पित करें।
- फिर एक माला “ऊं गं गणपत्यै नमः ” मंत्र की जप लें। गणेशजी से क्षमा प्रार्थना कर लें और पूजा आरंभ करने की अनुमति लें।
- चूंकि दावात पूजा साल में एक बार होती है इसलिए ज्यादातर लोग इसे विधि-विधान से करना चाहते हैं। श्री चित्रगुप्त महाराज एवं धर्मराज के पूजन से पहले कलश स्थापना करके वरुण देवता का आवाहन करें।
- फिर गणेश अम्बिका का पूजन कर उनका आवाहन करना चाहिए।चित्रगुप्त पूजा में मां भगवती के शक्तिस्वरूप की पूजा अवश्य होती है इसलिए पास में ही मां दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर भी रखें और उनकी भी स्तुति अवश्य करें।
- तत्पश्चात ईशान कोण में वेदी बनाकर नवग्रह की स्थापना कर आवाहन करना चाहिए।नवग्रह की स्थापना के लिए नवग्रह मंत्र का उच्चारण कर सकते हैं। नवग्रह स्थापना का विधान करने में असमर्थ हैं तो निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए नवग्रहों का स्मरण कर उन्हें प्रणाम करें। मंत्र बहुत सरल है। इसे आप रोज की पूजा में भी शामिल कर लें तो अच्छा है।
नवग्रह मंत्रः
ऊँ ब्रह्मामुरारि त्रिपुरान्तकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च।
गुरू च शुक्र: शनि राहु केतव: सर्वेग्रहा: शान्ति करा: भवन्तु ।।
अब चित्रगुप्त महाराज की पूजा जिसे दावात पूजा भी कहते हैं, आरंभ होती है.......
सबसे पहले पूजन एवं हवन सामग्री पर जल छड़कते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
नमस्तेस्तु चित्रगुप्ते, यमपुरी सुरपूजिते।
लेखनी-मसिपात्र, हस्ते, चित्रगुप्त नमोस्तुते।।
पूजा के लिए धूप, दीप, चन्दन, लाल फूल, हल्दी, रोली, अक्षत, दही, दूब, गंगाजल, घी, कपूर, कलम, दावात, कागज, पान, सुपारी, गुड़, पांच फल, पांच मिठाई, पांच मेवा, लाई, चूड़ा, धान का लावा, हवन सामग्री एवं हवन के लिए लकड़ी आदि की जरूरत होती है।
यदि घर में शस्त्र हैं तो उनकी भी पूजा कर लेनी चाहिए। इसके बाद भगवान श्रीचित्रगुप्त जी का आवाहन करें-
श्री चित्रगुप्त भगवन जी स्तुति
जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।
जय पूज्यपद पद्मेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।
जय देव देव दयानिधे, जय दीनबन्धु कृपानिधे।
कर्मेश जय धर्मेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।
जय चित्र अवतारी प्रभो, जय लेखनीधारी विभो।
जय श्यामतम, चित्रेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।
पुर्वज व भगवत अंश जय, कास्यथ कुल, अवतंश जय।
जय शक्ति, बुद्धि विशेष तव, शरणागतम् शरणागतम्।।
जय विज्ञ क्षत्रिय धर्म के, ज्ञाता शुभाशुभ कर्म के।
जय शांति न्यायाधीश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।
जय दीन अनुरागी हरि , चाहें दया दृष्टि तेरी।
कीजै कृपा करूणेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।
तब नाथ नाम प्रताप से, छुट जायें भव, त्रयताप से।
हो दूर सर्व कलेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।
जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।
जय पूज्य पद पद्येश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।
स्वस्तिवाचन -
ॐ गणना त्वां गणपति हवामहे, प्रियाणां त्वां प्रियेपत्र हवामहे निधीनां त्वां निधिपते हवामहे वसो मम आहमजानि गर्भधामा त्वमजासि गर्भधम ।
ॐ गणपत्यादि पंचदेवा नवग्रहाः इन्द्रादि दिग्पाला दुर्गादि महादेव्यः इहा गच्छत स्वकीयाम् पूजां ग्रहीत भगवतः चित्रगुप्त देवस्य पूजमं विघ्नरहित कुरूत।
ध्यान -
तच्छरी रान्महाबाहुः श्याम कमल लोचनः कम्वु ग्रीवोगूढ शिरः पूर्ण चन्द्र निभाननः ।।
काल दण्डोस्तवोवसो हस्ते लेखनी पत्र संयुतः | निःमत्य दर्शनेतस्थौ ब्रह्मणोत्वयक्त जन्मनः ।।
लेखनी खडगहस्ते च- मसि भाजन पुस्तकः | कायस्थ कुल उत्पन्न चित्रगुप्त नमो नमः ।।
मसी भाजन संयुक्तश्चरोसि त्वं महीतले | लेखनी कठिन हस्ते चित्रगुप्त नमोस्तुते ।।
चित्रगुप्त नमस्तुभ्यं लेखकाक्षर दायक | कायस्थ जाति मासाद्य चित्रगुप्त मनोस्तुते ।।
योषात्वया लेखनस्य जीविकायेन निर्मित | तेषा च पालको यस्भात्रतः शान्ति प्रयच्छ मे ।।
भगवान चित्रगुप्त का आह्वान मंत्रः
ॐ आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरौ भव।
यावत्पूजं करिष्यामि तावत्वं सान्निधौ भव।
ॐ भगवन्तं श्री चित्रगुप्त आवाहयामि स्थापयामि ।।
दोनों हाथ जोड़कर प्रभु चित्रगुप्त जी से प्रार्थना कीजिये - हे प्रभु मैं आपका आह्वान करता हूं। आप इस स्थान पर आकर विराजमान हों। मैं पूरे भक्तिभाव के साथ यथाशक्ति आपका पूजन करने को इच्छुक हूं। भगवन आप मेरी पूजा को स्वीकार करने के लिए पधारें।
इसके बाद आसन देने का विधान है।
निम्न मंत्र पढ़ते हुए भगवान चित्रगुप्त को आसन दें-
ॐ इदमासनं समर्पयामि। भगवते चित्रगुप्त देवाय नमः ।।
हे प्रभु चित्रगुप्तदेव आपका सेवक आपके समक्ष यह आसन समर्पित करता है, कृपया इसे स्वीकार करे ।
पाद्य अर्थात पांव पखारने के लिए जल दें।
पाद्य मंत्र -
ॐ पादयोः पाद्यं समर्पयामि। भगवते चित्रगुप्त देवाय नमः ।।
हे प्रभु चित्रगुप्तदेव आपके चरण कमल धोने के लिए मैं जल समर्पित करता हूँ इसे स्वीकार करें।
इसके बाद आचमन कराया जाता है।
आचमन मंत्र -
ॐ मुखे आचमनीयं समर्पयामि। भगवते चित्रगुप्ताय नमः ।।
हे देवाधिदेव प्रभु चित्रगुप्त यह पवित्र जल आचमन के लिए प्रस्तुत करता हूँ, इसे स्वीकार करें।
स्नान -
आचमन के बाद स्नान कराने का विधान है।स्नान मंत्र बोलते हुए प्रतिमा के पास जल छिड़कें :
ॐ स्नानार्तः जलं समर्पयामि । भगवते श्री चित्रगुप्ताय नमः ।।
हे सनातन देव आप ही जल है, पृथ्वी है, अग्नि और वायु है यह सेवक जीवन रुपी जल आपके स्नान हेतु समर्पित करता है, इसे स्वीकार करें।
स्नान के उपरांत वस्त्र समर्पित करना चाहिए।
वस्त्र अर्पण -
ॐ पवित्रो वस्त्रं समर्पयामि। भगवते श्री चित्रगुप्त देवाय नमः।।
हे देवाधिदेव, प्रभु चित्रगुप्त जी आपके चरणों में यह सेवक वस्त्र भेंट करता है, इसे स्वीकार करें।
पुष्प अर्पण -
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए फूलों की माला चढ़ाएं :-
ॐ पुष्पमालां च समर्पयामि । भगवते श्री चित्रगुप्तदेवाय नमः ।।
हे परम उत्तम दिव्य महापुरुष प्रभु चित्रगुप्त भगवान आपके चरणों में यह सेवक सुगन्धित पुष्प अर्पित करता है , इसे स्वीकार करें।
निम्न मंत्र का जप करते हुए हुए सुगंधित धूप जलाएं-
ॐ धूपं समर्पयामि।भगवते श्री चित्रगुप्तदेवाय नमः ।।
हे अंतर्यामी देव आपके श्री चरणों में यह सेवक सुगन्धित धुप प्रस्तुत करता है , इसे स्वीकार करें।
दीप दर्शन -
दीप जला लें और निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए दीप दिखाएं-
ॐ दीपं दर्शयामि । भगवते श्री चित्रगुप्त देवाय नमः।।
हे देवाधिदेव, प्रभु चित्रगुप्त जी उत्तम प्रकाश से युक्त अंधकार को दूर करने वाला घृत एवं बत्तीयुक्त डीप आपके चरणों में प्रकाशमान है, इसे स्वीकार करें।
नैवेद्य समर्पण -
अब एक पात्र में नैवेद्य या मिठाइयां रख लें और निम्न मंत्र का जप करते हुए समर्पित कर दें।
ॐ नैवेद्यं समर्पयामि। भगवते श्री चित्रगुप्त देवाय नमः ।।
हे प्रभु चित्रगुप्त जी आपके श्री चरणों में स्वादिष्ट शुद्ध , मधुर फलों से युक्त नैवैध समर्पित करता हूँ, इसे स्वीकार करें।
तांबूल अर्पण -
ताम्बूल-दक्षिणा, हाथ में पान, कसैली, ईलायची और कुछ धन रख लें और उसे चढ़ा दें।
ॐ ताम्बूलं समर्पयामि।ॐ दक्षिणां समर्पयामि। भगवते श्री चित्रगुप्त देवाय नमः ।।
हे प्रभु चित्रगुप्त जी आपके श्री चरणों में ताम्बूल एवं दक्षिणा समर्पित करता हूँ, इसे स्वीकार कीजिये ।
दवात -लेखनी मंत्र
लेखनी निर्मितां पूर्व ब्रह्यणा परमेष्ठिना ।
लोकानां च हितार्थाय तस्माताम पूजयाम्ह्यम ।।
पुस्तके चर्चिता देवी , सर्व विद्यान्न्दा भवः ।।
मदगृहे धन-धान्यादि-समृद्धि कुरु सदा ।।
लेखयै ते नमस्तेस्तु , लाभकत्रर्ये नमो नमः ।।
सर्व विद्या प्रकाशिन्ये , शुभदायै नमो नमः ।।
ॐ लेखनी देवते इहागच्छ। में पूजां ग्रहाण, आवाहनं करोमि।।
अब परिवार के सभी सदस्य एक सफेद कागज पर एप्पन (चावल का आटा, हल्दी, घी, पानी ) व रोली से स्वस्तिक बनायें । उसके नीचे पांच देवी देवतावों के नाम लिखें, जैसे -श्री गणेश जी सहाय नमः, श्री चित्रगुप्त जी सहाय नमः, श्री सर्वदेवता सहाय नमः आदि |
इसके नीचे एक तरफ अपना नाम पता व दिनांक लिखें और दूसरी तरफ अपनी आय व्यय का विवरण दें , इसके साथ ही अगले साल के लिए आवश्यक धन हेतु निवेदन करें। फिर अपने हस्ताक्षर करें।
इस कागज और अपनी कलम को हल्दी रोली अक्षत और मिठाई अर्पित कर पूजन करें |
अब श्री चित्रगुप्त जी का ध्यान करते हुए निम्न लिखित मंत्र का कम से कम ११ बार उच्चारण करें -
मसीभाजन संयुक्तश्चरसि त्वम् ! महीतले |
लेखनी कटिनीहस्त चित्रगुप्त नमोस्तुते ||
चित्रगुप्त ! मस्तुभ्यं लेखकाक्षरदायकं |
कायस्थजातिमासाद्य चित्रगुप्त ! नामोअस्तुते ||
इसके बाद श्रीचित्रगुप्त पूजन कथा सुननी चाहिए।
भगवान श्री चित्रगुप्त पूजन कथा
भीष्म पितामह ने पुलस्त्य मुनि से पूछा कि हे महामुनि संसार में कायस्थ नाम से विख्यात मनुष्य किस वंश में उत्पन्न हुए हैं तथा किस वर्ण में कहे जाते हैं, इसे मैं जानना चाहता हूँ।इस प्रकार के वचन कहकर भीष्म पितामह ने पुलस्त्य मुनि से इस पवित्र कथा को सुनने की इच्छा जाहिर की।
पुलस्त्य मुनि ने प्रसन्न होकर गंगा पुत्र भीष्म पितामह से कहा – हे गांगेय मैं कायस्थ उत्पत्ति की पवित्र कथा का वर्णन आपसे करता हूं। जो इस जगत का पालनकर्ता है वही फिर नाश करेगा उस अव्यक्त शांत पुरुष लोक- पितामह ब्रम्हा ने जिस तरह पूर्व में इस संसार की कल्पना की है वही वर्णन मैं कर रहा हूँ।
मुख से ब्राम्हण, बाहु से क्षत्रिय, जंघा से वैश्य, पैर से शूद्र, दो पांव, चार पांव वाले पशुओं से लेकर समस्त सर्पादि जीवो का एक ही समय में चन्द्रमा, सूर्यादि ग्रहों को और बहुत से जीवों को उत्पन्न कर ब्रम्हा ने सूर्य के समान तेजस्वी ज्येष्ठ पुत्र को बुलाकर कहा- हे सुब्रत तुम यत्नपूर्वक इस जगत की रक्षा करो।
सृष्टि का पालन करने के लिए ज्येष्ठ पुत्र को आज्ञा देकर ब्रम्हा ने एकाग्रचित होकर दस हजार वर्ष की समाधि लगाई। अंत में विश्रांत चित्त हुए। उसके उपरांत ब्रम्हा के शरीर से बड़ी-बड़ी भुजाओं वाले श्यामवर्ण, कमलवत गर्दन, चक्रवत तेजस्वी, अति बुद्धिमान, हाथ में कलम-दवात लिए तेजस्वी, अतिसुन्दर विचित्रांग, स्थिर नेत्र वाले, एक पुरुष अव्यक्त जन्मा, जो ब्रम्हा के शरीर से उत्पन्न हुआ ।
हे भीष्म! उस अव्यक्त पुरुष को नीचे से ऊपर तक देखने के बाद ब्रम्हाजी ने समाधि छोडकर पूछा- हे पुरुषोत्तम हमारे सामने स्थित आप कौन हैं ? ब्रम्हा का यह वचन सुनकर वह पुरुष बोला- हे विधे में आप ही के शरीर से उत्पन्न हुआ हूं इसमें किंचित मात्र भी संदेह नहीं है । हे तात ! अब आप मेरा नामकरण करें और मेरे योग्य कार्य भी कहिये ।
यह वाक्य सुनकर ब्रम्हाजी निज शरीर रज पुरुष से प्रसन्न मुद्रा से बोले- मेरे शरीर से तुम उत्पन्न हुए हो इससे तुम्हारी कायस्थ संज्ञा है और पृथ्वी पर चित्रगुप्त तुम्हारा नाम विख्यात होगा। हे वत्स धर्मराज की यमपुरी में धर्म-अधर्म विचार के लिए तुम्हारा निश्चित निवास होगा । हे पुत्र! अपने वर्ण में जो उचित धर्म है उसका विधिपूर्वक पालन करो और संतान उत्पन्न करो।
इस प्रकार ब्रम्हा जी भार युक्त वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए। श्री पुलस्त्य मुनि ने कहा है- हे भीष्म चित्रगुप्त से जो प्रजा उत्पन्न हुई है, उसका भी वर्णन करता हूँ, सुनिये।
चित्रगुप्त का प्रथम विवाह सूर्य नारायण के बड़े पुत्र श्राद्धदेव मुनि की कन्या नंदिनी एरावती से हुआ। इनसे चार पुत्र उत्पन्न हुए।
- प्रथम भानु जिनका नाम धर्मध्वज है जिसने श्रीवास्तव कायस्थ वंश की वृद्धि की।
- द्वितीय पुत्र मतिमान जिनका नाम समदयालु है जिनसे सक्सेना वंश चला।
- तृतीय पुत्र चारु जिनका नाम युगन्धर है, इनसे माथुर कायस्थ वंश शुरू हुआ।
- चतुर्थ पुत्र सुचारू जिनका नाम धर्मयुज है उनसे गौड कायस्थ वंश बढ़ा ।
चित्रगुप्तजी का दूसरा विवाह सुशर्मा ऋषि की कन्या शोभावती से हुआ। इनसे आठ पुत्र हुए।
- प्रथम पुत्र करुण जिनका नाम सुमति है उनसे कर्ण कायस्थ हुए।
- द्वितीय पुत्र चित्रचारू जिनका नाम दामोदर है, उनसे निगम कायस्थ हुए।
- तृतीय पुत्र का नाम भानुप्रकाश है जिनसे भटनागर कायस्थ हुए।
- चतुर्थ युगन्धर से अम्बष्ठ कायस्थ हुए।
- पंचम पुत्र वीर्यवान जिनका नाम दीन दयालु है से अस्थाना कायस्थ हुए।
- छठे पुत्र जीतेंद्रीय जिनका नाम सदानन्द है से कुलश्रेष्ठ कायस्थ वंश चले।
- अष्टम पुत्र विश्वमानु जिनका नाम राघवराम है से बाल्मीक कायस्थ हुए।
हे भीष्म चित्रगुप्त से उत्पन्न सभी पुत्र सभी शास्त्रों में निपुण थे और धर्म-अधर्म को जानने वाले थे। श्रीचित्रगुप्त ने सभी पुत्रों को पृथ्वी पर भेजा और धर्म साधना की शिक्षा दी और कहा की तुम्हें देवताओं का पूजन, पितरों का श्राद्ध-तर्पण, ब्राम्हणों का पालन-पोषण और अभ्यागतों की यत्नपूर्वक श्रद्धा करना।
हे पुत्र तीनो लोकों के हित के लिए यत्नकर धर्म की कामना करके महर्षिमर्दिनी देवी का पूजन अवश्य करना जो प्रकृति स्वरूप हैं और चण्ड मुण्ड का नाश करने वाली तथा समस्त सिद्धियों को देने वाली है। ऐसी देवी के लिए तुम सब उत्तम मिष्ठानादि समर्पण करो जिससे वह चण्डिका देवताओं की भाँती तुमको भी सिद्ध देने वाली हों।
वैष्णव धर्म का निर्वाह करते हुए मेरे वाक्य का पालन करो । सभी पुत्रों को आज्ञा देकर चित्रगुप्त स्वर्गलोक चले गये स्वर्ग जाकर चित्रगुप्त धर्मराज के अधिकार में स्थित हुए। हे भीष्म इस प्रकार चित्रगुप्त की उत्पत्ति मैंने आपसे कही।
अब मैं उन लोगों का विचित्र इतिहास और चित्रगुप्त का जैसा प्रभाव उत्पन्न हुआ सो भी कहता हूँ।श्री पुलस्त्य मुनि बोले कि नित्य पाप कर्म में रत पृथ्वी पर सौदास नामक राजा हुआ। उस पापी दुराचारी तथा धर्म-कर्म से रहित राजा ने जिस प्रकार स्वर्ग में जाकर पुण्य के फल का भोग किया वह कथा सुना रहा हूं।
राजनीति को नहीं जानते हुए राजा ने अपने राज्य में ढिंडोरा पिटवा दिया कि दान-धर्म, हवन, श्राद्ध-तर्पण, अतिथियों का सत्कार, जप-नियम तथा तप मेरे राज्य में कोई ना करे । देवी आदि की भक्ति में तत्पर वहां के निवासी ब्राम्हण लोग उसके राज्यों को छोड़ अन्य राज्यों में चले गये।
जो रह गये वे यज्ञ हवन श्रद्धा तथा तर्पण कभी नहीं करते थे। हे गंगापुत्र तबसे उसके राज्य में कोई भी यज्ञ हवन आदि पुण्य कर्म नहीं कर पाता था।उस समय पुण्य उस राज्य से ही बाहर हो गया था। ब्राम्हण तथा अन्य वर्ण के लोग नाश करने लगे।अब आपको उस दुष्ट राजा का कर्म फल सुनाता हूँ।
हे भीष्म! कार्तिक शुक्ल पक्ष की उत्तम तिथि द्वितीय को पवित्र होकर सभी कायस्थ चित्रगुप्त का पूजन करते थे। वे भक्तिभाव से परिपूर्ण होकर धूप-दीप आदि कर रहे थे। देवयोग से राजा सौदस भी घूमता हुआ वहां पहुंचा और पूजन देखकर पूछने लगा यह किसका पूजन कर रहे हो।
तब वे लोग बोले कि राजन हम लोग चित्रगुप्त की शुभ पूजा कर रहे हैं। दैवयोग से यह सुनकर राजा सौदस के मन में पूजा ने कहा कि मैं भी चित्रगुप्त की पूजा करूँगा।
यह कहकर सौदास ने विधिपूर्वक स्नानादि करके मन से चित्रगुप्त की पूजा की।इस भक्ति युक्त पूजा करने से उसी क्षण राजा सौदस पापरहित होकर स्वर्ग चला गया।
इस प्रकार चित्रगुप्त का प्रभावशाली इतिहास मैंने आपसे कहा। अब हे नृपश्रेष्ठ और क्या सुनने की आपकी इच्छा है? यह सुनकर भीष्म पितामह ने महर्षि पुलस्त्य मुनि से कहा- हे मुनिवर किस विधि से वहां उस राजा सौदस ने चित्रगुप्त का पूजन किया जिसके प्रभाव से सौदास स्वर्ग लोक को चला गया, वह कहें।
श्रीपुलस्त्य मुनि बोले- हे भीष्म! चित्रगुप्त के पूजन की संपूर्ण विधि मैं आप से कह रहा हूं।घृत से बने नैवेध, ऋतुफल, चन्दन, पुष्प, दीप तथा अनेक प्रकार के रेशमी और विचित्र वस्त्र से, शंख मृदंग, डिम डिम अनेक बाजे के साथ भक्तिभाव से पूजन करें।
हे विद्वान नवीन कलश लाकर जल से परिपूर्ण करें।उस पर शक्कर भरा कटोरा रखें और यत्नपूर्वक पूजनकर ब्राम्हण को दान देवें।पूजन का मंत्र भी इस प्रकार पढ़े – दवात कलम और हाथ में खल्ली लेकर पृथ्वी में घूमने वाले हे चित्रगुप्त आपको नमस्कार हे चित्रगुप्त आप कायस्थ जाति में उत्पन्न होकर लेखकों को अक्षर प्रदान करते हैं जिसको आपने लिखने की जीविका दी है।आप उनका पालन करते हैं इसलिए मुझे भी शांति दीजिए।
हे भीष्म इन मंत्रों से संकल्पपूर्वक चित्रगुप्त का पूजन करना चाहिए। इस प्रकार राजा सौदास ने भक्तिभाव से पूजन कर निज राज्य का शासन करता हुआ कुछ ही समय में मृत्यु को प्राप्त हुआ। यमदूत राजा सौदास को भयानक यमलोक में ले गए।
चित्रगुप्त ने यमराज से पूछा कि यह दुराचारी पाप कर्मरत सौदास राजा है जिसने अपनी प्रजा से पापकर्म करवाया है। इसके लिए कठोरतम दंड का विधान होना चाहिए।
इस प्रकार धर्मराज से पूछे जाने पर धर्माधर्म को जानने वाले महामुनि चित्रगुप्त जी ने हंसकर उस राजा के लिए धर्मयुक्त शुभ वचन कहा- हे धर्मराज, यह राजा यद्यपि पापकर्म करने वाला पृथ्वी में प्रसिद्ध है और मैं आपकी प्रसन्नता से पृथ्वी पर पूज्य हूं।
हे स्वामिन आपने ही मुझे वह वर दिया है।आपका सदैव कल्याण हो।आपको नमस्कार है। हे देव आप भली-भांति जानते हैं और मेरी भी मति है कि यह राजा पापी है तब भी इस राजा ने भक्तिभाव से मेरी पूजा की है इससे मैं इससे प्रसन्न हूं हे इष्टदेव इस कारण यह राजा बैकुंठ लोक को जाए।
चित्रगुप्त का यह वचन सुनकर यमराज ने राजा सौदास को बैकुंठ जाने की आज्ञा दी और राजा सौदास बैकुंठ लोक को चला गया। श्री पुलस्त्य मुनि ने कहा- हे भीष्म जो कोई सामान्य पुरुष या कायस्थ चित्रगुप्त की पूजा करेगा वह भी पाप से छूटकर परमगति को प्राप्त करेगा।
हे गांगेय, आप भी सर्वविधि से चित्रगुप्त की पूजा करिए जिसकी पूजा करने से हे राजेन्द्र आप भी दुर्लभ लोक को प्राप्त करेंगे। पुलस्त्य मुनि के वचन सुनकर भीष्म ने भक्ति मन से चित्रगुप्त की पूजा की।
चित्रगुप्त की दिव्य कथा को जो श्रेष्ठ मनुष्य भक्ति मन से सुनेगे वे मनुष्य समस्त व्याधियों से छूटकर दीर्घायु होंगे और मरने पर जहाँ तपस्वी लोग जाते हैं, ऐसे विष्णु लोक को जाएंगे।
।। बोलो श्री चित्रगुप्त जी महाराज की जय।।
अब सभी सदस्य श्री चित्रगुप्त जी की आरती गावें |
।। भगवान श्री चित्रगुप्त जी की आरती ।।
ओम् जय चित्रगुप्त हरे, स्वामी जय चित्रगुप्त हरे।
भक्तजनों के इच्छित, फल को पूर्ण करे।।
विघ्न विनाशक मंगलकर्ता, सन्तन सुखदायी।
भक्तों के प्रतिपालक, त्रिभुवन यश छायी।। ओम् जय...।।
रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत, पीताम्बर राजै।
मातु इरावती, दक्षिणा, वाम अंग साजै।। ओम् जय...।।
कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक, प्रभु अंतर्यामी।
सृष्टि सम्हारन, जन दु:ख हारन, प्रकट भये स्वामी।। ओम् जय..।।
कलम, दवात, शंख, पत्रिका, कर में अति सोहै।
वैजयन्ती वनमाला, त्रिभुवन मन मोहै।। ओम् जय...।।
विश्व न्याय का कार्य सम्भाला, ब्रम्हा हर्षाये।
कोटि कोटि देवता तुम्हारे, चरणन में धाये।। ओम् जय...।।
नृप सुदास अरू भीष्म पितामह, याद तुम्हें कीन्हा।
वेग, विलम्ब न कीन्हौं, इच्छित फल दीन्हा।। ओम् जय...।।
दारा, सुत, भगिनी, सब अपने स्वास्थ के कर्ता।
जाऊँ कहाँ शरण में किसकी, तुम तज मैं भर्ता।। ओम् जय...।।
बन्धु, पिता तुम स्वामी, शरण गहूँ किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी।। ओम् जय...।।
जो जन चित्रगुप्त जी की आरती, प्रेम सहित गावैं।
चौरासी से निश्चित छूटैं, इच्छित फल पावैं।। ओम् जय...।।
न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी, पाप पुण्य लिखते।
'नानक' शरण तिहारे, आस न दूजी करते।। ओम् जय...।।
इसके पश्चात् ख़ुशी पूर्वक श्री चित्रगुप्त जी महराज और श्री गणेश जी महाराज से अपने और अपने लोगों के लिए मंगल आशीर्वाद प्राप्त करते हुए शीश झुकाएं एवं प्रसाद का वितरण करें |
आइये जानते हैं की चित्रगुप्त जी की पूजा से क्या फायदे हो सकते हैं ?
- जीवन में अगर न्याय नहीं मिल रहा हो तो धर्मराज की पूजा से लाभ मिल सकता है।
- जीवन में शांति नहीं मिल रही हो तो भी चित्रगुप्त जी की पूजा से लाभ होता है।
- ज्ञान प्राप्त करने के लिए भी चित्रगुप्त जी का आशीर्वाद लेना चाहिए।
- जो लोग लेखा-जोखा का काम करते हैं उनको तो चित्रगुप्तजी की पूजा अवश्य करना चाहिए। वणिक वर्ग के लिए यह नवीन वर्ष का प्रारंभिक दिन कहलाता है। इस दिन नवीन बहियों पर 'श्री' लिखकर कार्य प्रारंभ किया जाता है। जिससे कार्य में बरकत बनी रहती है। व्यापार में उन्नती बरकरार रहती है। कहते हैं कि इसी दिन से चित्रगुप्त लिखते हैं लोगों के जीवन का बहीखाता।
- पुराणों के अनुसार चित्रगुप्त पूजा करने से विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।
- चित्रगुप्त की पूजा करने से साहस, शौर्य, बल और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
- भैया दूज के दिन भगवान चित्रगुप्त की पूजा के साथ-साथ लेखनी, दवात तथा पुस्तकों की भी पूजा की जाती है। इससे विद्या की प्राप्ति होती है।
- अगर कोई भी व्यक्ति जटिल समस्याओं में फंसा हो तो ऐसे में चित्रगुप्त जी की आराधना करना विशेष फलदाई हो सकता है।
Devotional
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