गुरु गोविन्द सिंह की जीवनी | Guru Gobind Singh Biography.
वहीं गुरुगोविन्द सिंह जी की खालसा वाणी – Guru Gobind Singh Ki Bani
"वाहेगुरु जी दा खालसा वहीगुरु जी दी फतेह"
गुरु गोबिंद जी के जन्म 5 जनवरी, 1666, पटना साहिब, बिहार में हुआ था। उनके पिता गुरु तेग बहादुर सिंह जो 9वें सिख गुरु थे और माता गुजरी देवी थी वे अपने माता पिता के इकलौते बेटे थे, जिन्हें बचपन में सब उन्हें गोबिंद राय के नाम से पुकारते थे। करीब 4 साल तक वे पटना में ही रहे, वहीं उनका जन्म स्थान आज “तख़्त श्री पटना हरिमंदर साहिब” के नाम से मशहूर है।
इसके बाद 4 साल की उम्र में वे अपने परिवार के साथ पंजाब में लौट आए और फिर वो जब 6 साल के हुए तब हिमालय की शिवालिक घाटी में स्थित चक्क ननकी में रहने लगे। जो कि आज आनंदपुर साहिब के नाम से जाना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसी स्थान पर अपनी प्राथमिक शिक्षा लेने के साथ अस्त्र-शस्त्र चलाने की विद्या, लड़ने की कला, तीरंदाजी करने की कला सीखी। इसके अलावा पंजाबी, ब्रज, मुगल, फारसी, संस्कृत भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया |
गोबिंद जी के पिता एवं नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर सिंह ने, कश्मीरी पंडितों का धर्म-परिवर्तित कर मुस्लिम बनाए जाने के खिलाफ खुलकर विरोध किया था एवं खुद भी इस्लाम धर्म कबूल करने से मना कर दिया था। जिसके बाद भारतीय इतिहास के मुगल शासक औरंगजेब ने 11 नवम्बर 1675 को भारत की राजधानी दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में गुरु तेग बहादुर सिंह का सिर कटवा (सिर कलम) दिया था। उसके बाद 29 मार्च 1676 को, महज 9 साल की छोटी सी उम्र में गुरु गोबिंद सिंह जी को औपचारिक रूप से सिखों का 10वां गुरु बनाया गया था।
गुरु गोबिंद सिंह की पत्नियाँ
गुरु गोविन्द सिंह की तीन पत्नियाँ थी सबसे पहले 21जून, 1677 को 10 साल की उम्र में उनका विवाह माता जीतो के साथ आनंदपुर से 10 किलोमीटर दूर बसंतगढ़ में किया गया। उनसे 3 लड़के हुए जिनके नाम थे – जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फ़तेह सिंह। 4अप्रैल, 1684 को 17 वर्ष की आयु में उनका दूसरा विवाह माता सुंदरी के साथ आनंदपुर में हुआ। उनसे उनको एक बेटा हुआ जिसका नाम था अजित सिंह। 15अप्रैल, 1700 को 33 वर्ष की आयु में उन्होंने फिर माता साहिब देवन से विवाह किया। उनसे उनको कोई संतान की प्राप्ति नहीं हुई|
खालसा पंथ की स्थापना – Khalsa Panth Ki Sthapna|
अत्याचार और अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज उठाने एवं मानवता की गरिमा की रक्षा के लिए समर्पित महान योद्धाओं की मजबूत सेना बनाने को ध्यान में रखते हुए बैसाखी के दिन साल 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की गई। खालसा एक सिख धर्म के विधिवत दीक्षा प्राप्त अनुयायियों का एक सामूहिक रुप है। गुरु गोबिंद जी ने बैसाखी के दिन अपने सभी अनुयायियों को आनंदपुर में इकट्ठा किया और पानी और पातशा (पंजाबी मिठास) का मिश्रण बनाया और इस मीठे पानी को “अमृत” कहा। इसके बाद उन्होंने अपने स्वयंसेवकों से कहा जो कि स्वयंसेवक अपने गुरु के लिए अपने सर का बलिदान देने के लिए तैयार है, वह खालसा से जुड़े। इस तरह 5 स्वयंसेवक अपनी अपनी इच्छा से खालसा से जुड़ गए। जिसके बाद उन्होंने इन पांचों स्वयंसेवकों को अमृत दिया एवं खुद भी अमृत लिया एवं अपना नाम गुरु गोबिंद राया से गुरु गोबिंद सिंह रख दिया। बपतिस्मा प्राप्त सिख बनने के बाद गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ के मूल सिद्धांतों की स्थापना भी की जिन्हें गुरुगोबिंद जी के ‘5 ककार’ या ‘5 कक्के’ भी कहा जाता है।
बपतिस्मा वाले खालसा सिखों पांच प्रतीक |
- कंघा :- एक लकड़ी की कंघी, जो कि साफ-सफाई एवं स्वच्छता का प्रतीक मानी जाती है।
- कारा :- हाथ में एक धातु का कंगन पहनना।
- कचेरा :- कपास का कच्छा अर्थात घुटने तक आने वाले अंतर्वस्त्र
- केश :- जिसे सभी गुरु और ऋषि मुनि धारण करते आए हैं अर्थात बपतिस्मा वाले सच्चे सिखों को कभी अपने सिर के बाल नहीं काटने चाहिए।
- कृपाण :- एक कटी हुई घुमावदार तलवार।
गुरु गोबिंद सिंह द्धारा लड़े हुए कुछ प्रमुख युद्ध |
इतिहासकारों की माने तो गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन में 14 प्रमुख्य युद्ध किए, इस दौरान उन्हें अपने परिवार के सदस्यों के साथ कुछ बहादुर सिख सैनिकों को भी खोना पड़ा। लेकिन गुरु गोविंद जी ने बिना रुके बहादुरी के साथ अपनी लड़ाई जारी रखी।
- भंगानी का युद्ध (1688) (Battle of Bhangani)
- नंदौन का युद्ध (1691) (Battle of Nadaun)
- गुलेर का युद्ध (1696) (Battle of Guler)
- आनंदपुर का पहला युद्ध (1700) (Battle of Anandpur)
- निर्मोहगढ़ का युद्ध (1702) (Battle of Nirmohgarh)
- बसोली का युद्ध (1702) (Battle of Basoli)
- चमकौर का युद्ध (1704) (Battle of Chamkaur)
- आनंदपुर का युद्ध (1704) (Second Battle of Anandpur)
- सरसा का युद्ध (1704) (Battle of Sarsa)
- मुक्तसर का युद्ध (1705) (Battle of Muktsar)
गुरु गोबिंद सिंह जी की प्रमुख रचनाएं |
गुरु गोविंद जी की कुछ रचनाओं के नाम निम्नलिखित हैं |
- चंडी दी वार
- जाप साहिब
- खालसा महिमा
- अकाल उस्तत
- बचित्र नाटक
- ज़फ़रनामा
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