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भगत सिंह की जीवनी | Biography of Bhagat Singh |

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भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर सन् 1907 को बांगा गाँव ल्यालपुर जिला में हुआ था जो की लाहौर में पड़ता था चूंकि अब पाकिस्तान में पड़ता है। भगत सिंह के माता का नाम विद्यावती कौर और पिता का नाम किशन सिंह है। भगत सिंह के सात भाई और एक बहन थी। भगत सिंह ने बचपन से ही अपने घर वालों में देश भक्ति देखी थी, इनके चाचा अजित सिंह बहुत बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जिन्होंने भारतीय देशभक्ति एसोसिएशन भी बनाई थी,  भगत सिंह की कुछ पढ़ाई लिखाई लाहौर हुई थी, लेकिन उसमे भी भगत सिंह को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। क्योंकि उस समय के जो अँग्रेजी हुकुमत के स्कूल हुआ करते थे जिसमे दाखिला नहीं मिलता था।

13 अप्रैल सन् 1919 को जलियावाला बाग कांड किनको याद नहीं होगा उस घटना से भगत सिंह को बहुत आहत हुआ था।उस समय इनकी उम्र 11 – 12 साल ही रही होगी और 40 KM तक पैदल ही चलकर उस जलियावाला बाग में गए, और वहां पर जाकर उन्होंने उस घटना को फील किया, और वहां मौजूद कुआँ जिसमे आज भी उस पानी में रक्त की बूंदे है। और वहां से भगत सिंह ने खून से सने मिट्टी को एक बोतल में भरकर अपने घर ले आया।

और उस मिट्टी को लाकर भगत सिंह घर में एकदम से कुछ समय के लिए चुपचाप शांत सा पड़ गया। जब उनकी बहन ने पूछा कि क्या हुआ तो भगत सिंह ने खून से सनी मिट्टी को दिखाया और कहा इस मिट्टी में उन देशवासियों का रक्त मिला हुआ है। जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपनी जान दे दी। जिसका मैं अंग्रेजो से बदला लेकर ही रहूँगा अंग्रेजो को देश से मार भगाउंगा। जब पिता खेत में आम की गुठली बो रहे थे तब भगत सिंह ने पूछा आप आम की गुठली क्यों बो रहे है तो पिताजी ने कहा आम का पेड़ होगा उसके बाद बहुत से आम फरेंगे। भगत सिंह ने कहा कि मैं बन्दुक बोऊंगा ताकि बन्दूको का पेड़ उगे और मुझे बंदूके इसलिए चाहिए की मुझे अंग्रेजो को भागना है।

1920 में गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन शुरू किया जिसमे गोरो के द्वारा बनाई गई चीजो का बहिष्कार किया जाने लगा।गाँधी जी ने सीधा कह दिया कि अंग्रेजो के द्वारा बनाई गई चीजो के इस्तेमाल ही न करो अपने अपने एक दिन अंग्रेज देश छोड़ के चले जायेंगे। क्या आपको ऐसा लगता है? गाँधी जी ने कहा था कि मैं इस काम को मैं शांतिपूर्वक तरीके से करा दूंगा और पूरा देश मान भी गया था, गाँधी जी के विचार से भगत सिंह बहुत प्रभावित थे और उनके साथ हो लिए।

असहयोग आन्दोलन जिस वक्त चल रहा था उस दरमियान चौरी चौरा स्थान जो बिहार के गोरखपुर में पड़ता है जहाँ पर 1922 में वहां पर पुलिस थाने के सामने पुरे जोर शोर से प्रदर्शनकारियों के साथ मिलकर वहां बिक रहे अंग्रेजी शराब, कपड़े और अन्य चीजो का बहिष्कार कर रहे थे।

चौरी चौरा कांड से यहाँ पर महात्मा गांधी जी को बहुत आहत होती है और कहता है कि मैं अपना आन्दोलन वापस ले रहा हूँ। मैं कह रहा हूँ असहयोग, अहिंसा के बलबूते पर हम आजादी लेना चाहते हैं और तुमने इतने सारे पुलिस वाले को मार दिया उसके बाद गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया। और जैसे ही आन्दोलन वापस लिया वैसे ही दो दल बन गए एक गर्म दल एक नर्म दल जिसमे भगत सिंह का गर्म दल था और गाँधी जी का नर्म दल था।

1928 में उनकी मुलाकात एक प्रसिद्ध क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद के साथ हुई। भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद दोनों क्रांतिकारियों ने ‘हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ’ बनाने के लिए संगठन तैयार किया और फरवरी 1928 में साइमन कमीशन की भारत यात्रा के दौरान, लाहौर में साइमन कमीशन की यात्रा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। इन विरोध प्रदर्शनकारियों में लाला लाजपत राय भी शामिल थे, जो पुलिस द्वारा की गई लाठी चार्ज में घायल हो गए और बाद में इन्हीं चोटों के कारण उनकी मृत्यु भी हो गयी थी। भगत सिंह ने लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए उनकी हत्या के लिए जिम्मेदार ब्रिटिश अधिकारी, उप निरीक्षक जनरल स्कॉट को मारने का फैसला कर लिया। परन्तु उन्होंने गलती से सहायक अधीक्षक सॉन्डर्स को ही स्कॉट समझ कर  गोली मार दी थी।

भगत सिंह ने 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय विधान सभा में एक बम फेंका और उसके बाद स्वयं गिरफ्तार हो गये थे। अदालत ने भगत सिंह, सुख देव और राज गुरु को उनकी विद्रोही गतिविधियों के कारण मौत की सजा सुनाई।

23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को फांसी दे दी गई. कहते है तीनों की फांसी की तारीख 24 मार्च थी, लेकिन उस समय पुरे देश में उनकी रिहाई के लिए प्रदर्शन हो रहे थे, जिसके चलते ब्रिटिश सरकार को डर था, कि कहीं फैसला बदल ना जाये, जिससे उन लोगों ने 23 व 24 की मध्यरात्रि में ही तीनों को फांसी दे दी और अंतिम संस्कार भी कर दिया.

 

 

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