• support@answerspoint.com

बिन्दुसार का जीवन परिचय व इतिहास | Biography of Bindusar

Advertisement

बिन्दुसार एक मौर्य सम्राट था जिसने 297 ईसा पूर्व से लेकर 273 ईसा पूर्व तक प्राचीन भारत पर राज किया। उसका जन्म 320 ईस्वी पूर्व में पाटलिपुत्र मे हुआ था। उसके पिता का नाम चंद्रगुप्त मौर्य और माता का नाम दुर्धरा था। उसकी माता दुर्धरा धनानंद की पुत्री थी।

बिन्दुसार को “बिन्दुसार” नाम आचार्य चाणक्य ने दिया था। इसके पीछे एक कहानी है। आचार्य चाणक्य रोजाना चंद्रगुप्त के भोजन में कुछ मात्रा में जहर मिला देते थे ताकि चंद्रगुप्त की जहर के प्रति इम्यूनिटी बनी रहे।

एक दिन चंद्रगुप्त ने जहर मिला हुआ भोजन अपनी गर्भवती पत्नी दुर्धरा के साथ खा लिया। दुर्धरा की प्रसीभूति होने में 7 दिन बचे थे। तो उस जहर के कारण दुर्धरा की मौत हो गई और बिन्दुसार अभी तक पेट में था।

जब आचार्य चाणक्य को यह बात पता चली तब बहुत देर हो चुकी थी। फिर भी चाणक्य ने दुर्धरा के पेट को चीर के गर्भ से बच्चे को निकाल लिया। परंतु बच्चे के सिर में जहर की कुछ बूंदें पहुंच चुकी थी पर आचार्य चाणक्य ने बड़ी ही कुशलता पूर्वक उसे जहर से मुक्त कर दिया और उसे बचा लिया।

इस जहर की बूंद की वजह से आचार्य चाणक्य ने इस बच्चे का नाम बिन्दुसार रखा था।

 

बिन्दुसार की जीवन परिचय

चंद्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र बिन्दुसार सम्राट बना। यूनानी लेखों के अनुसार इसका नाम अमित्रकेटे था। विद्वानों के अनुसार अमित्रकेटे का संस्कृत रूप है अमित्रघात या अमित्रखाद (शत्रुओं का नाश करने वाला)। सम्भवतः यह बिन्दुसार का विरुद रहा होगा। तिब्बती लामा तारनाथ तथा जैन अनुश्रुति के अनुसार चाणक्य बिन्दुसार का भी मंत्री रहा। चाणक्य ने 16 राज्य के राजाओं और सामंतों का नाश किया और बिन्दुसार को पूर्वी समुद्र से पश्चिमी समुद्र पर्यन्त भू-भाग का अधीश बनाया। हो सकता है कि चंद्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात कुछ राज्यों ने मौर्य सत्ता के विरुद्ध विद्रोह किया हो। चाणक्य ने सफलतापूर्वक उनका दमन किया। दिव्यावदान में उत्तरापथ की राजधानी तक्षशिला में ऐसे ही विद्रोह का उल्लेख है। इस विद्रोह को शान्त करने के लिए बिन्दुसार ने अपने पुत्र अशोक को भेजा था। इसके पश्चात अशोक खस देश गया। सम्भवतः नेपाल के आस-पास के प्रदेश के खस रहे होंगे। तारनाथ के अनुसार खस्या और नेपाल के लोगों ने विद्रोह किया और अशोक ने इन प्रदेशों को जीता।

विदेशों के साथ अशोक ने शान्ति और मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखा। सेल्यूकस वंश के राजाओं तथा अन्य यूनानी शासकों के साथ चंद्रगुप्त के समय के सम्बन्ध बने रहे। स्टैवो के अनुसार सेल्यूकस के उत्तराधिकारी एण्टियोकस प्रथम ने अपना राजदूत डायमेकस बिन्दुसार के दरबार में भेजा। प्लिनी के अनुसार टोलमी द्वितीय फिलेडेल्फस ने डायोनियस को बिन्दुसार के दरबार में नियुक्त किया।

अपने पिता की भाँति बिन्दुसार भी जिज्ञासु था और विद्वानों तथा दार्शनिकों का आदर करता था। ऐथेनियस के अनुसार बिन्दुसार ने एण्टियोकस (सीरिया का शासक) को एक यूनानी दार्शनिक भेजने के लिए लिखा था। दिव्यावदान की एक कथा के अनुसार आजीवक परिव्राजक बिन्दुसार की सभा को सुशोभित करते थे।
इसके साथ ही हमें कुछ ऐसे प्रमाण भी मिलते हैं जिनसे एक विजेता के रूप में बिंदुसार की क्षमता पर से विश्वास कुछ उठ-सा जाता है, क्योंकि उसके शासनकाल में उसके साम्राज्य के उत्तर-पश्चिमी प्रांत तक्षशिला में विद्रोह उठ खड़ा हुआ था और इस विद्रोह का दमन करने के लिए उसे अपने सुयोग्य पुत्र अशोक को नियुक्त करना पड़ा था।

बिन्दुसार की चाणक्य के प्रति घृणा

जब चंद्रगुप्त ने राजा के पद का त्याग कर दिया था तब चाणक्य ने उसे संन्यास लेने के लिए कहा। चंद्रगुप्त वन में जाकर रहने लग गए। परंतु, आचार्य चाणक्य बिन्दुसार के प्रधानमंत्री बने रहे। तो एक दिन चाणक्य ने बिन्दुसार को कहा कि “सुबन्धु” को आप मंत्री बना लो।

परंतु, सुबन्धु चाणक्य से जलता था और उच्च पद का मंत्री बनना चाहता था तो उसने बिन्दुसार को बता दिया कि उसकी माता दुर्धरा का चाणक्य ने पेट चीर दिया था। तो बिन्दुसार ने इस बात की स्त्री नर्सों (दाइयों) से जाँच पड़ताल की। और उसने इस बात को सत्य पाया।
इसके बाद बिन्दुसार ने चाणक्य से घृणा करनी शुरू कर दी। चाणक्य उस समय बहुत वृद्ध हो चुके थे और इस घृणा की वजह से उन्होंने सेवानिवृत्ति ले ली। इसके बाद उन्होंने समाधि लेने की सोची।

परंतु जब बिन्दुसार को पूरी बात का पता चला कि उसे बचाने के लिए चाणक्य ने ये सब किया था। तो उसने चाणक्य से विनती की कि आप दोबारा प्रधानमंत्री बन जाइए। परंतु, चाणक्य ने मना कर दिया तो बिन्दुसार ने सुबन्धु को चाणक्य को शांत कराने के लिए भेजा।

इतिहासकार यह बताते हैं कि सुबन्धु ने वृद्ध चाणक्य के आवास में जाकर उनको जलाकर मार दिया। इसके बाद सुबन्धु भी पागल हो गए और सेवानिवृत्ति ले ली|

बिन्दुसार की मृत्यु

बिन्दुसार मौर्य की मृत्यु 270 ईसा पूर्व को पाटलिपुत्र में हुई थी। उसकी मौत का मुख्य कारण उसकी कमजोर स्वास्थ्य स्थिति थी। जिसकी वजह से वह ज्यादा बीमार पड़ गया और और उसका देहांत हो गया।

बिन्दुसार ने 297 ईसा पूर्व से 273 ईसा पूर्व तक प्राचीन भारत पर मौर्य साम्राज्य के शासक के रूप में लगभग 27 वर्षों तक शासन किया। उन्होंने अपने राज्य के विस्तार पर ज्यादा ध्यान न देकर सरंक्षण पर दिया। उस समय उनका साम्राज्य पहले से ही बहुत बड़ा था।

 

 

    Facebook Share        
       
  • asked 3 years ago
  • viewed 1180 times
  • active 3 years ago

Top Rated Blogs