गाय का बच्चा - Gay ka bachha
गाय का बच्चा
| गोनू झा की कहानी |
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गोनू झा से एक व्यक्ति ने अपनी गरीबी बताते हुए कहा, 'पंडितजी, अभी आपके पास कई गाऍं हैं, इस गरीबी में मुझे एक गाय मिल जाती तो बड़ा उपकार होता।
गोनू झा ने सहज भाव से कहा, 'तुमने माखन के यहाँ जो गाय पोसिया लगाई, वह तो अच्छा-खासा दूध दे रही है। उससे तो कुछ आमदनी होती ही होगी?
उसने उदास मन से कहा, 'पंडितजी, माखन के यहाँ एकमुश्त रुपए देने का करार है।' गोनू झा ने कहा, 'यह तो ठीक है; पर इस विपत्ति में कुछ घाटा सहकर भी समझौता तोड़ लो और रोज-रोज के दूध का हिसाब रखो।' उसने चिंतित मुद्रा में कहा, 'नहीं पंडितजी, यह तो मूर्खता होगी। आपके पास बहुत गाऍं हैं, इसलिए आप ही उबार सकते हैं।
गोनू झा ने भाँति-भाँति से उसे समझाने की कोशिशें की; कुछ रुपए ही लेने को कहा, किंतु उसका कहना था कि मैं कोई भिखारी नहीं बल्कि पड़ोसी हूँ; मरनी-हरनी में काम आता हूँ और भविष्य में भी पड़ोसी-धर्म निभाऊँगा। फिर याद दिलाते हुए बोला, 'पंडितजी, अभी सालभर भी नहीं हुआ है, आपको मियादी बुखार हो गया था। मैंने ही पड़ोस से वैद्यजी को बुला लाया। समय-कुसमय गाय-गोरुओं की देखभाल कर देता हूँ। आपका चरवाहा गाय चराने के बहाने सोया ही रहता है। कितनी बार गायों को पकड़कर 'ढाठ' ले जाने से बचाया। यही सोचकर कि आप मेरे पड़ोसी हैं, इसलिए विपत्ति में सहानुभूति रखनी चाहिए।'
गोनू झा उसके तर्कों को सुन-सुनकर क्षुब्ध होते जा रहे थे। बीमार पड़ने के कारण उस साल की खेतीबारी चौपट हो गई थी । गाय-बैल अनेरा हो गए थे; जब जो चाहे, बैलों का उपयोग कर छोड़ देता था और चरवाहे की बात मानता ही कौन है? ऊपर से धृष्टता यह कि चरवाहे को मुँह लगाने की हिम्मत कैसे हो? उसे ही चार बात कह देता था। बेचारा चरवाहा बिपता सुनने के अलावा और करता ही क्या?
गोनू झा इतने एहसानफरामोश कैसे हो सकते थे कि स्वार्थवश ही कुशल-क्षेम पूछनेवालों को दूष्ट और स्वार्थी कह दें, इसलिए सब कुछ उन्हें सुनना था।
मवेशियों को वह बड़े यत्न और ममता से पालते थे, इसलिए गाय देना नहीं चाहते थे। डर था कि गाय सेवा और दया के अभाव में मारी न जाए, क्योंकि मॅंगनी के माल को कौन सहजकर रखता है?
कितना भी समझाया, पर वह गाय से कम पर पीछा छोड़ने को तैयार नहीं था। अंततः गोनू झा ने उसे बथान पर ले जाकर कहा, 'तुम्हें इतनी ही आवश्यकता है, तो इन्हीं में से गाय की कोई संतान ले लो।'
उसने ताना मारते हुए कहा, 'वाह पंडितजी, आपने खूब कहा! मैं दान लेनेवाला नहीं हूँ कि बेकार की चीज आपके दरवाजे से ले जाऊँ।
गोनू झा ने उसे ऊपर से नीचे तक निहारते और मुस्कुराते हुए कहा, 'तो ठीक है; इनमें जो गाय का बच्चा न हो, उसे ही ले जाओ।' वह बथान में घूमा और एक दुधारू गाय दिखाते हुए कहा, 'यही दे दीजिए।'
गोनू झा ने कहा, 'लेकिन यह भी गाय की ही बछिया है।' फिर उसने दूसरे पर हाथ डाला। गोनू झा ने प्रश्न भरी निगाह से पूछा, क्या यह गाय का बच्चा नहीं है?
वह बथान में चारों ओर घूम-घूमकर देखता रहा। उसे एक भी ऎसी गाय न मिली, जो कभी गाय का बच्चा न रही हो।
अंततः वह बिना कुछ बोले सिर झुकाए चलता बना।
Gonu Jha Ki Kahaniyan
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- asked 3 years ago
- B Butts