अंधभक्ति - Andhbhakti
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती| (Kosis Karne Valo Ki Har Nahi Hoti) - सोहनलाल द्विवेदी
अंधभक्ति
| गोनू झा की कहानी |
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गोनू झा के पिता उचित खर्चों में भी कंजूसी करते थे, किंतु साधु-संतों में उनकी बड़ी आस्था थी; किसी सामुद्रिक को देखकर तो मचल ही उठते थे। उनकी इस कमजोरी से गोनू झा भलीभाँति अवगत हो चुके थे।
एक बार गोनू झा को कुछ रुपयों की सख्त जरूरत महसूस हुई। पिता से बहुत अनुनय-विनय किया और घर से भाग जाने की धमकी भी दी, फिर भी पिता टस-से-मस नहीं हुए।
दूसरे ही दिन गोनू झा लापता। पिता ने चारों तरफ आदमी दौड़ाए। माँ ने अन्न-जल त्याग दिया।
संयोग से उसी दिन एक महात्मा गोनू झा के घर आ पहुँचा। उसे सद्यः भगवान मानकर उनके माता-पिता अतिशय आदर-सत्कार करने में जुट गए। पिता ने पुत्र के बारे में पूछा । महात्मा ने मुँह पर उँगली रखते हुए संकेत से ही कहा, 'मैं मौनी बाबा हूँ, इसलिए लिखकर ही बताऊँगा।'
उसने लिखकर बताया, 'गोनू इस पृथ्वी पर मस्ती में है और मेरे मंत्रों के प्रभाव से कल तक लौट आएगा।'
मनोनूकूल उत्तर सुनकर माता-पिता प्रसन्न हो गए; खुसी के मारे उसे रुपए-पैसे और अँगूठी भी प्रदान कर दी। आनन-फानन में ग्रामीणों की भीड़ भी जुटने लगी।
साधु लोगों को उनका अतीत बता-बताकर भविष्यवाणियाँ करने लगा । उसके पूर्ण ज्ञान से संतुष्ट होकर ग्रामवासियों ने यथेष्ट धन दिया।
साधु ने रात-भर गोनू झा के यहाँ रहना स्वीकार कर लिया ।
दूसरे दिन वह साधु गोनू झा के पिता से तड़कते ही अनुमति ले और मोटे सामानों को छोड़कर विदा हुआ। गृहस्वामी ने भक्ति-भाव से कहा, 'महाराज, सामान क्यों छोड़ते जा रहे हैं ? आप जहाँ कहें, वहाँ मैं पहुँचवा दूँगा।'
साधु ने स्लेट पर लिख दिया, 'रमता योगी, बहता पानी। साधुओं को खाने-पीने की क्या चिंता ! और आप सुपुत्र की चिंता न करें; वह चल चुका है ।'
स्लेट पर गृहस्वामी विभोर हो गए और साधु को हाथ जोड़कर विदा किया।
माता-पिता गोनू झा की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे। तभी गोनू झा कंधे पर झोला लटकाए दरवाजे पर उपस्थित हुए । माता-पिता ने उन्हें हृदय से लगाया और भाँति- भाँति के प्रश्न उनसे करने लगे।
गोनू झा ने कटाक्ष करते हुए कहा, 'कल से अभी तक जितना मुझे सुख और सम्मान मिला है, उसका शतांश भी इस घर में कभी नहीं मिल पाया है ।'
साधु की भविष्यवाणी सही निकली कि गोनू झा मस्ती में है और आज आ भी रहा है। माता-पिता ने साधू को मन ही मन शतशः साधुवाद दिया।
गोनू झा को बड़े सत्कार से भोजन मिला। माता ने झोला खोलकर देखना चाहा तो गोनू झा ने अँगूठी और रुपए-पैसे निकालकर पिता के श्रीचरणों पर रख दिए।
उन्होंने चौंकते हुए पूछा, 'ये क्या हैं?
गोनू झा ने सहजता से कहा, 'पूज्यवाद पिताजी, कल की कमाई है।
उन्होंने अँगूठी उठाकर देखी और विस्मय से पूछा, 'यह तुम्हें कहाँ मिली?'
गोनू झा ने ढिठाई से कहा, 'पिताजी, आजकल के अधिकांश साधू-संत नकली होते हैं; कल मैं ही नाटयमंडली से साधु का वेश धारण कर आया था। आप वैसे ही साधु-संतो के अंधभक्त बने रहते हैं और दूसरी ओर माताराम के उचित खर्च को भी टालते रहते हैं।'
पिता ने प्रसन्न होते हुए कहा, 'गोनू, आज तुमने मेरी आँखें खोल दीं ।'
Gonu Jha Ki Kahaniyan
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- asked 3 years ago
- B Butts