• support@answerspoint.com

ऐसे मैं मन बहलाता हूँ | (ese mai man bahlata hu) - हरिवंशराय बच्चन

-:  ऐसे मैं मन बहलाता हूँ :-

(हरिवंशराय बच्चन)

-------------


सोचा करता बैठ अकेले,
गत जीवन के सुख-दुख झेले,
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम,
उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

आह निकल मुख से जाती है,
मानव की ही तो छाती है,
लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

-------------

    Facebook Share        
       
  • asked 3 years ago
  • viewed 873 times
  • active 3 years ago

Top Rated Blogs