मिथिलाक संस्कृति ( Mithilak sanskriti ) - खट्टर ककाक तरंग - हरिमोहन झा |
मिथिलाक संस्कृति
(खट्टर ककाक तरंग)
ओहिदिन खट्टर कका मखानक लावा फॅंकैत रहथि। हमरा हाथ में लेख देखि पुछलन्हि- ई की थिकौह ?
हम कहलिऎन्ह- मिथिला क संस्कृति पर एकटा निबंध तैयार कैल अछि। खट्टर कका बजलाह- किछु हमरो सुनाबह।
हम कहलिऎन्ह - पहिने राजर्षि जनक सॅं प्रारंभ कैने छिऎन्हि। ओ तेहन जीवन्मुक्त छलाह जे-
मिथिलायां प्रदीप्तायां न मे दहति किंचन!
एहन ब्रह्मज्ञान मिथिले में हो ।
खट्टर कका मुस्कुराइत बजलाह – हौ, यैह ब्रह्मज्ञान त हमरा सभ के लाहेब कऽ देलक । सौसे मिथिला में आगि ने लागि जाउ, मैथिल भाइ क लेखेँ धन्न सन !
हम – खट्टर कका, हुनका सॅं ई शिक्षा भेटैत अछि जे पद्मपत्र जकाँ निर्लिप्त रहबाक चाही ।
खट्टर कका बजलाह – उपमा त बड्ड सुन्दर । परन्तु एको दिन तेना रहि क देखह त । यदि तों कमलक पात जकांँ रहि जाह त हम एखन जा कऽ तोरा बाड़ी सॅं सभटा भाँटा तोड़ि लाबी। हौ, पद्म पत्र बनि कऽ रहबह त लोक घराड़ी पर्यन्त दखल कऽ लेतौह ।
हम -परंतु जनक त विदेह छलाह ।
खट्टर कका-जौं सरिपहुँ विदेह रहितथि त जेहने राम, तेहने रावण । तखन एतेक रासे धनुष-यज्ञ ओ सीता-स्वयंवर ठनबाक कोन काज छलैन्ह ?
हम – अहाँ कैं त खंडने में रस भेटैत अछि । देखू, याज्ञवल्क्य ॠषि केहेन आत्मज्ञानी छलाह !
खट्टर कका व्यंग्यपूर्वक बजलाह - तेहन आत्मज्ञानी छलाह जे मैत्रेयी ओ कात्यायनी, दू दू टा स्त्री रखैत छलाह। एक आध्यात्मिक, दोसर सांसारिक । हमरा त जे किछु छथि से एका भार्या सुन्दरी वा दरी वा ........
हम - खट्टर कका, गार्गी ओ याज्ञवल्क्य क शास्त्रार्थ उच्च स्तर पर छैन्ह ?
खट्टर कका मुसकुराइत बजलाह - से त अपनहि पढि लैह । जखन गार्गी प्रश्न पुछैत पुछैत नाकोदम कऽ देलथिन्ह, तखन अन्त में याज्ञवल्क्य खिसिया कऽ कहलथिन्ह -आब बेसी पुछबै त माथ कटि कऽ नीचा खसि प ड़तौक । '’ हौ, अपना देशक पंडित लोकनि स्त्री कै एहिना झझकैत ऎलथिन्ह अछि।
हम -परंच प्रश्नोत्तरी क विषय केहन गूढ छ्लैन्ह ?
खट्टर कका क मखान निःशेष भऽ चुकल छलैन्ह । हाथ- मुँह पोछैत बजलाह - हौ ,हमरछौ वर्षक नतनी अछि। ओ तोरा काकी कैं पूछय लगलैन्ह –नानी, इ पृथ्वी कथीपर छैक ? इ कहलथिन्ह --शेषनाग पर । ओ पुछलकैन्ह-- शेषनाग कथि पर छथि ? इ कहलिथन्ह -- कच्छप पर । ओ पुछ्लकैन्ह - कच्छप कथि पर छथि ? ई कहलथिन्ह -तोरा मू ड़ी पर । हमरा त एहि नतिनी - नानी और गार्गी - याज्ञवल्क्यक संवाद में कोनो विशेष अन्तर नहिं बुझना जाइछ ।
हम - खट्टर कका , कहाँक बात कहाँ मिला देलिऐक ? गार्गी ओ मैत्रेयी केहन भारी विदुषी रहथि ?
खट्टर कका सुपारीक कतरा करैत बजलाह -हौ, गार्गी मैत्रेयी की जनैत रहथि ? आइकाल्हुक कलेजिया ल ड़की हुनका सिखा दितैन्ह ।
हम - खट्टर कका , अहाँ हँसी करैत छी।
खट्टर कका- तखन तों परीक्षा लऽ कऽ देखि लैह । आधुनिक युवक कै पुछहुन जे सीता सन चाही अथवा रीता सन ? देखहौक ,ककरा बेसी वोट अबै छैक । हँ ,आगाँ की लिखने छह ?
हम -खट्टर कका ,। अहा त हँसिए में सभटा बात उड़ा दैत छी। देखू , मंड न मिश्रक स्त्री सरस्वती केहन विदुषी रहथि जे शकराचार्य कै परास्त कऽ देलथिन्ह ।
खट्टर कका एक चुटकी कतरा मुँह में दैत बजलाह -हौ बालब्रह्मचारी सँ कत हु कामशास्त्र क विषय पुछल जाइक ? ई त तहिना भेल जेना केओ वैष्णव सँ माछ क स्वाद पुछैन्ह ।
हम -- ओ केहन आदर्श पत्नी रहथि ?
खट्टर कका दुरुखा दिस तकैत बजलाह - देखह ,एहन बात हमरा आङन में जुनि बजिहऽ । हौ वृद्ध स्वामी क मान -मर्दन कय युवा संन्यासी क गर में विज यमाला देब – ई कोनो नीक बात भेलैन्ह ? स्वाइत मंडन मिश्र घर छोड़ि संन्यासी भऽ गेलाह । यदि तोहर काकी एना करथुन्ह त एको दिन एहि घर में वास भऽ सकै छैन्ह ? एही भंगघोटना लऽ कऽ कपार फोड़ि देबैन्ह और ओहि साधुक संग गामक बाहर कऽ देबैन्ह ।`..... हँ ,आगाँ बढ़ह ।
हम -धन्य छी , खट्टर कका । आब हम की बाजू ? हुनका लोकनिक उच्च आदर्श छलैन्ह । एहि मिथिला में अयाची मिश्र सन संतोषी पंडित भऽ गेल छ थि जे सबा कट्ठा बाड़ीक साग खा कऽ गुजर कैलन्हि , किन्तु ककरो सँ किछु मँगलथिन्ह नहिं।
खट्टर कका- हौ, जकरा पुरुषार्थ रहै छैक से सवा कट्ठा सँ सवा सय बीघा बना लैत अछि । जे अकर्मण्य रहै अछि से ओतबे लय संतोष करै अछि । तों अप ना बेटा कैं कोन मार्ग पर चलय कहबह ? छुच्छ आदर्शक प्रशंसा कैने कोनो फल नहिं।
हम -- खट्टर कका ,मिथिलाक सदाचार समस्त देश में प्रमाण मानल जाइत अछि। देखू ,
धर्मस्य निर्णयः कार्यः मिथिला -व्यवहारतः।
एहिठाम एक सँ एक स्मृतिकार भऽ गेलाह अछि।
खट्टर कका – हौ ,यैह त अनर्थ भेलैक । आइकाल्हि एकटा कानून बनैत अछि त ओहि पर ओतेक रासे बहस होइ छैक । ताहि दिन स्मृतिकार लोकनिक अपने हाथ में कलम रहैन्ह । किछु खर्च त पड़बे नहिं करैन्ह । जे-जे मन में फुरलैन्ह, लिखि गेलाह ।
हम - परन्तु सभ वचनक किछु ने किछु वैज्ञानिक आधार त अवश्ये है।तैन्ह
खट्टर कका - वज्ञानिक आधार होउन्ह वा नहि, मनोवैज्ञानिक आधार अवश्ये छैन्ह । खोजबह त सभक गूढ अर्थ भेटि जैतौह ।
हम – जेना ? कोनो उदाहरण दिय ।
खट्टर कका –देखह, ओ लोकनि भोरे उठि स्नान करय जाथि, ता एम्हर फूल तोड़ि कय लऽ जाइन्ह । तैं नियम बना लेलन्हि जे स्नान सॅं पूर्वहि फूल तोड़ि कऽ राखि ली । बस, एकटा श्लोक तैयार भऽ गेल -
स्नानं कृत्वा तु ये केचित् पुष्पं चिन्वन्ति वै द्विजाः।
देवतास्तत्र गृह्णन्ति पूजा भवति निष्फला ॥
तहिना, कोनो मुनि नदी में स्नान करैत काल भसिया गेल हैताह। बस, एकटा वचन प्रस्तुत भऽ गेल जे ढोढी सॅं उपर जल में पैसि कय स्नान नहिं करी ।
नाभेरूर्ध्व हरेदायुरधोनाभेस्तपः क्षयः ।
नाभे समं जलं कृत्वा स्नानकृत्यं समाचरेत॥
हौ, पंडित लोकनि संदर्भ ओ परिस्थिति त बुझै छथि नहिं । तैं 'स्मृति' क तात्पर्य 'विस्मृति' भऽ गेल छैन्ह ।
हम - खट्टर कका, मिथिलाक माटि में सात्विकता भरल छैक ।
खट्टर कका – हॅं , ताहि सॅं एहिठाम केओ विक्रमादित्य, प्रताप वा शिवाजी नहिं बहरैलाह। कहियो युद्ध नहिं भेल। एक बेर कनरपीघाट में भेबो कैल त बाँसक फट्ठा लऽ कऽ । परन्तु हौ जी, ई सात्विक रणभीत जाति अपना में मारि करबा काल सहस्त्रबाहु बनि जाइत छथि । ओहि समय स्त्वगुण ओ ब्रह्मज्ञान कहाँ चलि जाइत छैन्ह ?
हम - खट्टर कका, एम्हर आबि कऽ एना भऽ गेलैक अछि । परन्तु ताहि दिनक मैथिल निर्द्वन्द रहैत छलाह । देखू श्रीमद्भागवत में लिखै छथि -
एतै वै मैथिलाः प्रोक्ता आत्मविद्याविशारदाः ।
योगेश्वरप्रसादेन द्वन्दैर्मुक्ताः गृहेष्वपि ॥
खट्टर कका – हौ, एकर गूढ अर्थ हम तोरा बुझा दैत छिऔह । योगेश्वर क अर्थ महादेव । तिनकर प्रसाद भांग । तकरा कृपा सॅं ओ लोकनि घरक चिन्ताजाल सॅं मुक्त भऽ जाइ छलाह । जेना हम ।
हम – अहाँ कैं त सभ बात में हँसिए रहै अछि । तैं लोक गोनू झाक अवतार कहै अछि ।
खट्टर कका - जे हमरा गोनू बुझै छथि तिनका हम भोनू बुझै छिऎन्ह। गोनू झा केवल चोर, हजाम ओ स्त्री कैं छकैबाक हाल जनै छलाह । हमरा त केवल पंडिते सॅं प्रयोजन रहैत अछि ।
हम - खट्टर कका, लाख कहिऔक, परन्तु मिथिला क जे अपन संस्कृति छैक से अक्षुण्णे रहतैक ।
खट्टर कका भभा कऽ हँसि पड़लाह। बजलाह– हौ, बताह ! मधुबनी, दरिभंगा किंवा मिथिलाक संस्कृति कैं तों अहिबात क पातिल क दीप जकाँ बसात सॅं बचा कऽ राखय चाहै छह ? परन्तु ई की सम्भब छैक ? आब त तेहन बिहाड़ि आवि रहल छैक जाहि में सभटा छोटका छोटका दीप मिझा जैतैक । केवल एकटा बड़का 'मरकरी लाइट' जरैत रहि जैतैक ।
हमरा मुँह तकैत देखि खट्टर कका बजलाह - आब ओ युग नहि छैक जे हमर-तोहर तिरहुत, तिलकोर ओ पटुआक झोर में करमीक साग ओ कोढिला क पाग में, कोकटिक तौनि ओ सीकीक मौनी मे, डालाक भार ओ महफाक ओहार में सीमित रहि जाय । देखै छहौक नहिं, आब साड़ी-सलवार, दोसा- दलिपूड़ी, बैले-विद्यापति, मुर्गी-महादेव- सभ संगहि चलैत छैक । आब पंडौल मे पाव रोटी, सौराठ मे सैंडविच, टटुआर में टोस्ट, और कपिलेश्वर में कटलेट भेटतौह । नेहरा में नायलोन, जनकपुर में जार्जेट, लोहना में लिपस्टिक और हाबीभौआड़ में हाइहील देखबह । आइ फुलपरासक कन्या फ्राक पहिरि कऽ फूल तोड़ै छथि काल्हि गन्धवारि क पुतहु गाउन पहिरि कऽ गोसाउन पुजतीह। सेहो गोसाउन कतबा दिन रहै छथि से के जानय ?
हम - खट्टर कका, मिथिला सॅं भगवती किन्नहुँ नहि जा सकै छथि । जखन कुलदेवता, पातरि, नवरात्र, दशहरा, श्यामापूजा, लक्ष्मीपूजा- यैह सभ उठि जायत त फेर रहत की ? एकादशी, सोमवारी, कार्तिक-स्नान, सामा-चकेबा, मधुश्रावणी, नागपंचमी, कोजागरा, भार-दौर - यैह सभ त अपना देशक सोभा थीक । लाख पछवा बसात बहौ, परंच हमरा लोकनिक स्त्रीगण तुलसीकचौरा क दीप नहिं मिझाय देतीह ।
खट्टर कका बिहुँसैत बजलाह – हॅं , आँचर तर नुकौने रहतीह । परन्तु आँचर रहैन्ह तखन ने ! आब त संस्कृतोबला कैं सौख होइ छैन्ह जे बहु सल वारे पहिरथि । सासु मरौत काढै छथिन्ह, पुतोहु माथ उघारि कऽ चलै छथिन्ह। हुनको पुतोहु औथिन्ह त चट्टी पहिरि कऽ चिनवार पर अंडा फोड़थिन्ह । तखन कुलदेवताक रक्षा के करतैन्ह ?
हम - तखन अहाँक की विचार जे पुरनका रीति-नीति उठि जाय ?
खट्टर कका – हौ, जकरा उठबाक हैतैक से कि हमर विचार पूछि कऽ उठत । टीक ओ मोंछ कहिया पूछय आयल आएल जे घोघ ओ आँचर पूछय आओत ? जकरा जैबाक होइ छैक से स्वतः चलि जाइत अछि । जेना गोदना, मिस्सी ,खुदिया, चमकी । जकरा ऎबाक होइ छैक से स्वतः आबि जाइत जाइत अछि। जेना स्नो,पाउडर, नेलपालिश, ब्रेसरी। जखन स्वयं पंडित लोकनि सालमसाही पनही छोड़ि कऽ अँगरेजी जूता पहिरय लगलाह अछि तखन पंडिताइन लहठी फोड़ि कऽ प्लैस्टिकक चूड़ी किऎक ने पहिरथिन्ह ? हुनक बेटा ठोप मेटा कऽ टोप किऎक ने लगौतैन्ह ? आब बूढ-बुढानुस माथ पटकि कऽ मरि जैताह तथापि ने हुनक बेटा ठढौका चानन करतैन्ह, ने पुतौहु पटमासी सिंदूर करथिन्ह । छोटका पोता कैं रिट्ठा-रिट्ठी पहिरा कऽ देखथु त जे पहिरै छैन्ह ? हौ, ई पछबा बिरड़ौ सभटा पुरना पोथी-पतड़ा कैं उधिया कऽ फेकि देतौह । यैह युगधर्म थिकैक ।
हम - खट्टर कका, एहन भ्रष्ट युग हमरे सभक समय में किऎक आवि गेलैक
खट्टर कका – हौ, सभ युग मे एहिना भटमेर होइत एलैक अछि । बुढबा बुढबा पंडित लोकनि जे मिर्जई पहिरैत छथि से मुसलमानी अमलदारी में मिर्जा सभ पहिरैत छल । अचकन-चपकन कि वैदिक युगक वस्तु छैक ? तहिना आब नवका लोक अंगरेजी कोट पहिरैत अछि । ई घोरमट्ठा त होइतहि रहै छैक
हम - परन्तु ई त वर्णसंकरी सभ्यता भेल ।
खट्टर कका – वर्णसंकरी नहि, कलमी कहह । कलमी आम बेसी मीठ होइ छैक। तैं कलमी वस्तुक बेसी आदर होइ छैक। कलमी फल, कलमी बहु, कलमी बेटा । हौ, बीजू सभ्यता छैक कतय ?
हम - परञ्च हमरा सभक जे विशुद्ध संस्कृति
खट्टर कका भङ्गघोटना पटकैत बजलाह – हौ, संस्कृत कैं अंग्रेजी खैलक,संवत कैं ईसवी खैलक, आयुर्वेद कैं डाक्टरी खैलक, पंडित कैं साहेब खैलक, अछिंजल कै कल खैलक, धर्मशाला कैं होटल खैलक, महफा कैं रिक्सा खैलक, घोड़ा कै साइकिल खैलक, हाथी कैं मोटर खैलक, भागवत कैं सिनेमा खैलक, मन कैं क्विंटल खैलक, गज कैं मीटर खैलक, भोज कै 'पार्टी' खैलक,भांग कैं चाय खैलक, पतिव्रता कैं मेम खैलक, तथपि तों विशुद्ध संस्कृति क नाम जपितहि छह ? कीदन कहै छैक जे छीक गेल भरौड़ा और नाक जतनहि छी !
हम - तखन उपाय ?
खट्टर कका- उपाय किछु नहिं । चुपचाप देखैत चलह । जे जकरा सँ प्रवल होइ छैक से तेकरा खा जाइ छैक । ई मत्स्यन्याय थिकैक । एखन पश्चिमक काँति चमकल छैक । कहियो हमरा लोकनिक पासा पलटत त भऽ सकै अछि जे एक दिन लंदन मे लहठी ओ पेरिस मे पढ़िया साड़ी पहुँचि जाय । इंग्लैंड बाली अरिकोंच रान्हथि और अमेरिका बाली अदौरी भाँटा । आयरलैंड मे अरिपन और आस्ट्रेलिया में अहिबक फर चलि जाय । फ्रांस फक्किका पढ़य और जर्म नि यजुर्वेद । चीन चानन करय और जापान जनउ पहिरय । न्यूयार्क में नचारि ओ मास्को में महेशवानी सुनाइ पड़य । भऽ सकै अछि जे एक दिन सौंसे संसार समदाउनि गाबय लागय । परन्तु ई त सामर्थ्यक ऊपर छैक । जाहि वस्तु में शक्ति हैतैक से अमरलत्ती जकाँ पसरि जाएत ।
हम --खट्टर कका ,लोक अपन प्राचीन आचार छोड़ि कऽ नबका चालि पर किए ढुलैत अछि ?
खट्टर कका- हौ, आचार होउक वा आँचार । बेसी पुरान भऽ गेला उत्तर दहिया फुफरी पड़िए जाइत छैक । तखन गुमसाइन भऽ जाइ छैक । नवकाक स्वादे दोसर होइ छैक ।
हमरा मुँह तकैत देखि खट्टर कका बजलाह – हौ हमरा लोकनिक संस्कृत क वर्णमाला में ' अ ' क अर्थ होइ छल – अरबा चाउर ,अछिंजल । आब ' अ' से अंडा , आमलेट ।
हम -- तखन त किछु दिन में पुरनका पर्वो त्योहार उठि जायत ?
खट्टर कका बिहुँसैत बजलाह -- हमरो त यैक चिन्ता होइ अछि । कदाचित खिर – पुड़ी साँच – पिरुकिया ने उठि जाय तैं हम तोरा काकी कैं नित्य चौठचन्द्र करय कहैत छिऎन्ह । यावत तैलं तावत व्याख्यानम !
हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, हमरा लोकनि कैं चाही जे प्राणपण सॅं अपना संस्कृति कैं बचैबाक चेष्टा करी।
खट्टर कका परिहासक स्वर में बजलाह- हौ, हमर त विचार होइ अछि जे आब चन्द्रलोके में जा कऽ पुनः नव 'पाँजि' चलाओल जाय- “चन्द्रमा झा पाँजि "। तैखन अपन संस्कृति बाँचि सकैत अछि। ई पृथ्वी तऽ छुतहरि भऽ गेलि।
तावत् काकी भोजनक हेतु बजाबय आबि गेलथिन्ह। खट्टर कका हमरो अपना संग आङन नेने गेलाह। बाछीक गोबर सॅं नीपल पवित्र ठाम पर आसन लगाओल छल। हमरा लोकनि हाथ-पैर धो बैसलहुँ । काकी माछ भात नेने ऎलीह। सरोसो-आमिल देल भरि बाटी झोराओल माङ्गुर । छिपली में तरलकबइ । ऊपर सॅं अणाची कर्पूर सॅं सुवासित दही और कलमी आमक अमौट
खट्टर कका माछक झोर में जमीरी नेबोक रस गारि आचमन करैत बजलाह- होअह, ‘जय भगवती' करह। हमरा लोकनिक असली संस्कृति यैह थीक। जौं ई संस्कृति कायम रहि जाय त हम लाख बेरि मिथिला क कोखि मे जन्म ली । हमरा मोक्ष नहि चाही ॥
Harimohan Jha Ki Kahaniya
Maithili Story
- asked 3 years ago
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