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भगवान क चर्चा ( Bhagwank Charcha ) - खट्टर ककाक तरंग - हरिमोहन झा |

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 भगवान क चर्चा

(खट्टर ककाक तरंग)

लेखक : हरिमोहन झा
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ओहि दिन खट्टर कका हमरा देखि पुछलन्हि - हौ, आइ बहुत दिन पर देखलिऔह । कहाँ छिटकल जाइ छह ?

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, अहाँ लग अबैत डर होइ अछि ।

खट्टर कका - से किऎक ?

हम – अहाँ भगवान कैं नहिं मानैत छिऎन्ह ।

खट्टर कका मुसकुराइत बजलाह - बुझह त भगवाने हमरा नहिं मानैत छथि। हम त हुनका मौसा कऽ कऽ बुझैत छिऎन्ह ।

हम – अहाँ कैं त सभ बात में हॅंसिए रहैत अछि ।

खट्टर कका – हॅंसी नहिं, सरिपहुँ कहैत छिऔह । देखह, लक्ष्मी ओ दरिद्रा, दूहू सहोदरा बहिन । हम दरिद्राक पुत्र; ओ लक्ष्मी क स्वामी । तखन सम्बन्ध में भाङ्गठ की ?

हम - खट्टर कका, अहाँ भगवानो सॅं परिहास करैत छिऎन्ह । परन्तु यदि भगवान नहिं रहितथि त एतेक रासे सृष्टि कोना होइत ?

खट्टर कका – जेना नित्य होइत अछि । एही गाम में सहस्रो सृष्टिकर्ता मौजूद छथि। आन काज में लोक बुड़िबक रहौ, परन्तु एहि कार्य में ````

हम - खट्टर कक, अहाँ त दोसरे दिस लऽ गेलहुँ । हमर तात्पर्य जे आदि सृष्टिकर्ता त मानहि पड़त ।

खट्टर कका भांगक पुड़िया खोलैत बजलाह – हौ, मानबा में हमरा एको रत्ती उजुर नहिं । परन्तु कनेक बुझा कऽ कहह । ओ आदि-पुरुष कहाँ सॅं एलाह ? आकाश सॅं टपकि पड़लाह ? अथवा अनादि काल सॅं सूतल छलाह, और निन्द टुटला पर एकाएक सृष्टि करबाक प्रवृत्ति भेलैन्ह ? यदि सृष्टि कैलन्हि त कोन रुपें ? यदि ई कही जे आदि में कोनो स्त्री कैं उत्पन्न कय स्वयं पुरुषक कार्य सम्पादित कैलन्हि त हुनका गारिए पड़ि जएतैन्ह ! यदि आदि में एकटा नर ओ एकटा नारी उत्पन्न कैलन्हि त दूहू में भाइ-बहिनक सम्बन्ध ! जौं ओहि सॅं समस्त शाखा-सन्तति भेल, त सम्पूर्ण मनुष्य जातिए पतित थीक । तखन ककरा हाथक छुइल पानि पिउल जाय !

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, अहाँक तर्क में के सकत ? परन्तु आदि सृष्टिकर्ता केओ अवश्य छलाह ।

खट्टर कका भांग रगड़ैत बजलाह – बेस, मानि लेल जे ओ छलाह । परन्तु आब ओ की कऽ रहल छथि ? सृष्टिक जे कार्य छैक से त उत्तरोत्तर वृद्धिए पर छैक । सालोसाल हाँजक हाँज बच्चा जनमैत छैक । ताहि बीच में हुनका पड़बाक कोन प्रयोजन छैन्ह ? ओ पेंसन लऽ कऽ बैसथु ।

हम – खट्टर कका, ओ कि कात करोट भऽ कऽ बैसयबला छथि ? सर्वव्यापी घटघटवासी थिकाह । सर्व ब्रह्ममयं जगत ।

खट्टर कका - आब तों वेदान्त छांँटय लगलाह । परन्तु जे कहै छह ताहि पर अपना पूर्ण विश्वास छौह ?

हम - अवश्य । हममें तुममें खंभ खडग में, जहाँ देखो तहाँ राम ।

खट्टर कका - वाह रे ब्रह्मज्ञानी ! तखन हम पुछैत छी जे अहाँ पैखाना में बैसि क पूजा किऎक नहिं करैत छी ? चंदनक स्थान में मल किऎक नहि लेपैत छी ? दुर्गाक स्थान में मुर्गाक पूजा किऎक नहिं करैत छी ? चंडीक स्थान में रंडीक चरणामृत किऎक नहि पिबैत छी ?

हम - खट्टर कका, पवित्र ओ अपवित्रक विचार .......

खट्टर कका डटैत बजलाह - जखन सर्व ब्रह्ममयं जगत् तखन पवित्र की और अपवित्र की ? यदि भगवान सरिपहुँ घटघट-वासी थिकाह त मदिरा क घट में सेहो वास करैत छथि । तखन यज्ञशाला ओ मधुशाला में की अन्तर ?

हम - कुलवधु ओ वेश्या में त अवश्य भेद छैक ?

खट्टर कका भङ्गघोटना पटकैत बजलाह – की भेद छैक ? जैह ब्रह्म कुलवधूक शरीर में छथिन्ह, सैह ब्रह्म वेश्या क शरीर में । और जैह ब्रह्म पति में छथि न्ह, सैह जार में । तखन एतेक रासे टिटिंभा किऎक ?

हम - खट्टर कका, अहाँ सॅं पार पायब कठिन । परन्तु भगवानक महिमा अनन्त छैन्ह । ओ अन्तर्यामी सर्वशक्तिमान करुणानिधान ````

खट्टर कका – थम्हह, थम्हह, । एके बेर एतेक रासे विशेषण नहिं उझिलह । एक एकटा पचाबय दैह । हुनका अन्तर्यामी' किऎक कहैत छहुन्ह ?

हम - ओ सभक अभ्यन्तर में बास करैत छथि । हम अहाँ जे किछु करैत छी से हुनके प्रेरणा सॅं।'केनापि देवेन हृदिस्थितेन यथा नियुक्तोऽस्मि तथा करोमि।

खट्टर कका – बेस, त आब एही पर रहिहऽ । जौं दोसर डारि धैलह त एक भंगघोटना लगैबौह ।

हम – हॅं , लगा देब ।

खट्टर कका – अच्छा, त ई कहह जखन भगवाने सभ किछु करबै छथि तखन त हमरा लोकनि हुनका हाथक कठपुतरी भेलहूँ । जेना नचौताह, तेना नाचब ।

हम - ताहि में कोन संदेह ?

खट्टर कका - तखन हम पुछैत छिऔह जे साधु ओ चोर में की अन्तर ?

हम - साधु नीक कर्म करै छथि तैं उत्तम । चोर अधलाह कर्म करै अछि तैं अधम ।

ई सुनैत देरी खट्टर कका भंगघोटना उठबैत बजलाह – खबरदार ! तों तुरंत बाजल छलाह जे यथा नियुक्तोऽस्मि तथा करोमि । सभटा भगवाने करबैत छथि । वैह साधुक हाथ में माला ओ व्याधक हाथ में भाला धरबैत छथिन्ह । तखन फेर साधू कथी सॅं उत्तम और व्याध कथी सॅं अधम ? जे कहबाक हो से भगवान सॅं कहुन्ह ।

हमरा गोङ्गियाइत देखि खट्टर कका बजलाह - देखह एक रंग क बात बाजह। वेश्या जे कर्म करैत अछि से अपना प्रेरणा सॅं कि भगवानक प्रेरणा सॅं ? यदि भगवानक प्रेरणा सॅं त स्वयं भगवान दोषी छथि । यदि अपना प्रेरणा सॅं करैत अछि त ओ श्लोक काटि कऽ फेकह जे यथा नियुक्तोऽस्मि तथा करोमि ।

हम - खट्टर कका, हम की बाजू ? दुनू में एकोटा काटऽ योग्य नहिं बुझि पड़ै अछि । बिना भगवानक इच्छा सॅं एक टा तृण पर्यन्त नहिं डोलि सकैत अछि । और व्यभिचारक दोष भगवान पर थोपब, सेहो उचित नहिं ।

खट्टर कका - देखह , आब फेर हमर भंगघोटना सुगबुगाइत अछि । एक बात पर कायम रहह । की सभ बात भगवाने क इच्छा सॅं होइ छैन्ह ?

हम - अवश्य ।

खट्टर कका – बेस, तखन हम एक भंगघोटना कसि क तोरा लगबैत छिऔह । इहो त भगवानेक इच्छा सॅं हेतैन्ह ?

हमरा फेर गोंगियाइत देखि खट्टर कका बजलाह – बजै छह किऎक ने ? यदि सभ घटना भगवाने क इच्छा सॅं होइत छैन्ह तखन त जतेक हत्या ओ बलात्कार होइत छैक सभक छार-भार हुनके कप्पार पर छैन्ह ?

हम - खट्टर कका, भगवान अनन्त करुणामय छथि । एकटा गज पर संकट पड़लैन्ह त सुदर्शन चक्र लय दौड़लाह । एकटा भार्दूलक बच्चा कैं बचाबक हेतु महाभारत में गजघंट खसौलन्हि ।

खट्टर कका उत्तेजित होइत बजलाह - और हजारक हजार प्राणी जे नारायणी जहाज डूबय काल गोहारि कैलन्हि ताहि काल कि नारायण क सुदर्शन चक्र भोथ भऽ गेल छलैन्ह ? ओतेक मनुष्यक बच्चा जे कुम्भक मेला में पिचा क आर्त्तनाद कैलक ताहिकाल कि कान में तुर-तेल देल छलैन्ह जे गजघंटक बद ला में यमघंट खसा देलन्हि ? हौ, एहन भगवान कैं त कानक इलाज कराबक चाहिऎन्ह ।

हम - खट्टर कका, एना नहिं बाजी । ओ लोकनि पाप कैने हैताह, तैं क्लेश भोगय पड़लैन्ह ।

खट्टर कका - तखन त जतेक लोक सालोसाल कोशीक बाढि सॅं तबाह होइत छथि ओ सभ पापिए थिकाह ? जौं किनको बोच पकड़ि क घिसियबैन्ह त बूझी जे ओ अपन पूर्वजन्मकृत पापक भोग कऽ रहल छथि ? तखन गजो कैं डूबय दितऽथिन्ह ।

हम - गज पाप नहिं कैने हैताह ।

खट्टर कका - तखन ग्राह क मुँह में पड़लाह किऎक ? और जौं पुण्य कर्म कैने छलाह त स्वयं ताहि प्रताप सॅं बाँचि जैइतथि । भगवान कैं दौड़बाक कोन काज छलैन्ह ?

हम - जखन-जखन भक्त पर भीड़ पड़ैत छैन्ह तखन तखन भगवान स्वयं आवि कऽ रक्षा करैत छथिन्ह । ओ भक्तवत्सल थिकाह ।

खट्टर कका – अर्थात पक्षपाती थिकाह । जौं समदर्शी रहितथि त शबरी क बैर किऎक बेसी मीठ लगितैन्ह ? दुर्योधनक मेवा छोड़ि विदुरक साग किऎक खैतथि ? सुदामा एक मुठ्ठी चाउर देलथिन्ह तकरा बदला में त हुनका कोठा-सोफा बनि गेलैन्ह और हम जे बीस वर्ष धरि नित्य अक्षत छीटि कऽ पूजा कैलिऎन्ह से एकटा टटघरो नहिं बन्हबा भेलैन्ह ।

हम - खट्टर कका, यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी । जे हुनकर जतेक भक्ति करैत छैन्ह तकरा ततेक फल भेटैत छैक ।

खट्टर कका - तखन ई कहह जे भगवक़न बनियाँ छथि । जतबा दाम देबैन्ह ताहि हिसाब सॅं तराजू पर तौलि कऽ देताह । तखन हुनका ओ दमड़ी साहु में की अन्तर ?

हम - खट्टर कका, भगवान दयामय छथि। हुनकर करुणा क अन्त नहिं छैन्ह।

खट्टर कका - तखन संसार में जे एतेक दुःख-दारिद्र्य छैक से दूर किऎक नहि करैत छथि ? रोग, शोक, दुर्भिक्ष, महामारी - एहि सभ सॅं लोक कैं पेरैत किऎक रहैत छथि ?

हम - लोक अपना कर्म क फल सॅं क्लेश पबैत अछि ।

खट्टर कका - तखन त कर्मे प्रधान भेल । भगवान क इच्छा कहाँ रहलैन्ह ? ओ दयो करक चाहताह त की कऽ सकैत छथि ? हमरा कर्मे नहि कैल रहत त देताह कहाँ सॅं ? और जौं कर्मे कैल रहत तखन फेर हुनकर एहसाने कोन ?

‘जौं कबीर काशी में मरिहें, रामक कोन नेहोरा ?

हम - भगवान सर्वशक्तिमान छथि ।

खट्टर कका भाङ्गक गोला बनबैत बजलाह - बेस । तखन ओ संसारक समस्त क्लेश किऎक ने दूर करैत छथि ? दुइए टा कारण भऽ सकैत अछि । एक त ई जे ओ चाहिते नहिं छथि ? दोसर ई जे चाहैत छथि, परन्तु कऽ नहिं सकैत छथि । जौं नहिं चाहैत छथि त निर्दय छथि । जौं नहि कऽ सकैत छथि त निर्बल छथि । तखन हुनका दयालु आ सर्वशक्तिमान – दूनू एक संग किऎक कहैत छहुन्ह ? एकर जबाब दैह, नहिं त फेर हमर भंगघोटना उठत ।

हम - खट्टर कका, अहाँक जबाब त बड़का बड़का नहिं दऽ सकैत छथि । हम की दऽ सकैत छी ? परन्तु एतबा त अवश्य जे भगवानक माया अपरम्पार छैन्ह । हुनका हेतु किछु असम्भव नहिं । ओ जे चाहैथि से कऽ सकै छथि ।

खट्टर कका - बेस त हम एकटा पुछैत छिऔह । भगवान आत्महत्या कऽ सकैत छथि ?

हम - खट्टर कका, अहाँ कैं त विनोदे रहैत अछि । परन्तु भगवान मरताह किऎक ? जखन जखन पृथ्वी पर पापक वृद्धि होइत छैक तखन तखन ओ धर्मक रक्षार्थ अवतार लैत छथि ।

खट्टर कका भभा कऽ हॅंसि पड़लाह । बजलाह – हौ, पाप की कहबैक छैक?

हम किछु विषण्ण होइत कहलिऎन्ह - पाप थिक हिंसा ओ व्यभिचार । ई त सभ जनैत अछि ।

खट्टर कका मुसकुरा उठलाह । बजलाह - से तोरा भगवान कैं पसिन्द नहिं छैन्ह ?

हम - कदापि नहिं ।

खट्टर कका भांग घोरैत बजलाह - तखन हम पुछैत छिऔह जे आदिकर्ता बाघ किऎक बनौलन्हि ? सिंह कैं ओहन नख किऎक देलथिन्ह ? घरियाड़ कैं ओहन दाँत किऎक देलथिन्ह ? साँप में ओतेक जहर किऎक भरि देलथिन्ह ? बिच्छू में डंक किऎक देलथिन्ह ? कुकुर,बिलाड़ि, गीदड़, हुराड़, गीद्ध, चिल्होड़ि - सभ कैं शिकारी किऎक बनौलथिन्ह ? हौ, यदि हुनका अहिंसे पसिन्द छलैन्ह त लड़बाक प्रबृत्तिए जीब मे किऎक देलथिन्ह ? पहिने स्वयं आगि लगा कऽ घैल लऽ कऽ दौड़ी - ई कोन बुद्धिमानी भेल ? ```` और यदि हुनका सतीत्व बड्ड पसिंद छलैन्ह त चौरासी लाख योनि में कै टा योनि सतीत्व बला छैन्ह ? दुइयो टा नहिं । जौं हुनका ब्रह्मचर्ये पसिंद छलैन्ह त सृष्टिक प्रक्रिया ओहन अश्लील किऎक बनौलन्हि ?......तों एखन नेना छह । सभ बात नहि बुझबहक ?

हम - खट्टर कका, अहाँ त उनटे गंगा बहा दैत छिऎक । तखन पाप पुण्यक भेदे की रहलैक ?

खट्टर कका बिहुँसैत बजलाह – तों वेदान्तियो बनबह और पाप-पुण्यक भेदो रखबह ! ई दूनू बात कोना हेतौह ? यदि सर्व ब्रह्ममयं जगत् , तखन त ई मानय पड़तौह जे वैह ब्रह्म माछ बनि जल मे विचरण करैत छथि और वैह मलाह बनि ओकरा जाल मे बझबैत छथि । वैह गज बनि चिचियाइ छथि, वैह ग्राह बनि मूँ ह बबैत छथि । वैह चोर बनि चोरी करैत छथि , वैह कोतवाल बनि ओकरा पकड़ैत छथि । वैह ब्रह्मचारी बनि योगासन लगबैत छथि , वैह व्यभिचारी बनि भोगासन लगबैत छथि । तखन पाप की और पुण्य की ?

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, अहाँ त तेहन मकड़जाला लगा दैत छिऎक जे लोक कैं ससरबाक बाटे नहिं भेटैत छैक ।

खट्टर कका बजलाह – तोरा लोकनि अपने जाल में फॅंसि जाइत छह । एक बेर कहैत छह जे -

 

कर्म प्रधान विश्व करि राखा,

जो जस करहिं सो तस फल चाखा ।

और दोसर बेर कहैत छह जे -

 

होइहैं सोइ जो राम रचि राखा ,

को करि यत्न बढाबहि सखा ॥

कौखन कहैत छह जे भगवान सर्वव्यापी छथि ; कौखन कहैत छह जे ओ अवतार ग्रहण कय पृथ्वी पर अबैत छथि। खने कहैत छह जे भगवान समदर्शी छथि , खने कहै छह जे भक्तवत्सल छथि । एक दिस अद्वैतवादी सेहो बनैत छह और दोसर दिस पाप-पुण्य क भेद सेहो मानैत छह। एही द्वारे तेहन घुरची लागि जाइत छह जे लटपटा कऽ फॅंसि जाइत छह । बड़का बड़का पंडित एहि ससरफानी में ओझरा जाइत छथि ।

हम - खट्टर कका, अहाँ त ततेक प्रकारक शंका उत्पन्न कऽ दैत छिऎक जे आस्तिको क मन डवाँडोल भऽ जाइ छैक । आब अही कहू जे भगवान छथि कि नहिं ?

खट्टर कका मुसकुराइत बजलाह - छथि त अवश्ये । तखन प्रश्न ई जे ओ हमरा सभक सृष्टि कय अपन लीला कऽ रहल छथि अथबा हमरे लोकनि हुनक सृष्टि कय अपन मनोविनोद कय रहल छी ?

हम - खट्टर कका, ई त और शंका धऽ देलिऎक । अहाँ कि भगवान कैं काल्पनिक कऽ कऽ बुझैत छिऎन्ह ?

खट्टर कका विनोदपूर्वक बजलाह - नहिं । वास्तविको भगवान होइ छथि । जैह भाग्यवान सैह भगवान् । 'भग' शब्दादेव 'भाग्यं' निष्पद्यते । से जिनका जतेक प्रचुर राशि में उपलब्ध छैन्ह से तेहन बड़का 'भगवान' छथि । जिनका नहिं छैन्ह से अभाग्यवान छथि । ओ सृष्टि की करताह ?

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, अहाँ भांगक तरंग में भगवानो कैं लेलिऎन्ह ।

खट्टर कका भांग छनैत बजलाह – हौ, हमर एक पूर्वज (उदयनाचार्य) एक बेर भगवानो कैं डटने रहथिन्ह जे -

 

ऎश्वर्यमदमत्तोसि मामवज्ञाय तिष्ठसि ।

नास्तिकानां सभायां तु ममाधीना तवस्थितिः ॥

 

“हे भगवान् ! अहाँ एहि घमंड मे नहि रहू जे अहीं क अधीन हमर अस्तित्व अछि । नास्तिक सभक बीच में अहूँक अस्तित्व हमरे अधीन रहैत अछि ।"

तहिना हमहूँ सुना कय कहैत छिऎन्ह -

 

सदा तिष्ठसि नेपथ्ये, चोरवत निभृतः कथम ।

उत्थितेषु तरंगेषु ममाधीना तव स्थितिः ॥

 

‘चोर जकाँ सदिखन नुकायल की रहैत छी ? सामने आबि कऽ लोक कैं अपन मुँह देखबियौक ।..... हौ, जखन हमर तरंग उठैत अछि तखन भगवानो कैं डर होइत हैतैन्ह जे ई कतय भसिया कऽ लऽ जाएत । जौं कतहु हेताह त सुनिते हैताह । नहिं त अरण्यरोदने बुझह ।

खट्टर ककाक भांग तैयार भऽ गेल छलैन्ह । बजलाह - जे हो । आइ कोनो लाथे दू घड़ी भगवान क चर्चा त भेल ।

 

एक घड़ी आधा घड़ी आधो में पुनि आध ।

भगवानक चर्चा सरस, हरय कोटि अपराध ॥

 

ई कहि खट्टर कका दू बुन्द भगवानक नाम पर उत्सर्ग कय भरलो लोटा स चढा गेलाह ।

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