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देवताक चरित्र ( Devtak Charitra ) - खट्टर ककाक तरंग - हरिमोहन झा |

देवताक चरित्र

(खट्टर ककाक तरंग)

लेखक : हरिमोहन झा
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खट्टर कका भाङ पिउने बुत्त रहथि। हमरा हाथ मे लोटा देखि पुछलन्हि- आइ भोरे-भोर कहाँ चललाह अछि ?

हम - आइ शिवरात्रि थिकैक । महादेव पर जल ढारय जाइत छिऎन्ह ।

खट्टर कका- ई जाड़ मास। कनकन करैत। ताहि में तों भोरे-भोर पानि ढारय जाइत छहुन। से महादेव तोहर की बिगाड़लथुन्ह अछि ?

हम – खट्टर कका, अहाँ कैं त सभ बात में हॅंसिए रहैत अछि ।

खट्टर कका- हॅंसी नहिं करैत छिऔह । शिवजी त अपने शीतवीर्य थिकाह । हुनका पर जल ढारबाक कोन प्रयोजन ? ताहि सॅं बरु एक लोटा जल हमरा नेबो क गाछ में पटा देल करितह त फलो बहराइत ।

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, अहाँ कैं देवता में भक्ति नहिं अछि ?

खट्टर कका बजलाह - कोन देवता में भक्ति राखय कहै छह ?

हम - सभ देवता त पुज्ये छथि ।

खट्टर कका - कोन बात लऽ कऽ ?

हम - धर्म लऽ कऽ ।

खट्टर कका - तखन कोन देवता अधर्म सॅं बाँचल छथुन्ह ? हम त सभक उतेढि जनैत छिऎन्ह। जिनकर बखिया कहह, उघारि क राखि दिऔह ! बल्कि बूझह त देवता सॅं दैत्य क चरित्र उत्तम ।

हम - खट्टर कका, अहाँ धन्य छी ! सभ ठाम उनटे गंगा बहा दैत छिऎक ।

खट्टर कका - तखन देवासुर-संग्राम पढह। दैत्य सभ वीर छल और वीर जकाँ लड़ि कऽ मरैत छल देवता लोकनि केवल छल सॅं जितैत छलाह । ई लोकनि अन्यायी तेहन छलाह जे समुद्र-मंथन सॅं जे अमृत बहराएल से अपने सभ पिबैत गेलाह और विष बहराएल से ओकरा सभक आगाँ परसि देलथिन्ह । भीरु हद सॅं बेसी । जहाँ असुर सभ चडाइ करैन्ह कि लगले त्राहि-त्राहि कऽ दौरथि ब्रह्मा क ओतय सॅं विष्णु क ओतय सॅं महेश क ओतय। स्वार्थी एक नम्बर क। अपने गरजें आन्हर। एतबा विवेक नहिं जे ककरा सॅं कोन वस्तु माड़ि। दधीचि मुनि सॅं पीठ क हड्डी मांगि लेलथिन्ह । स्वाइत ओ बज्र बनि गेल। एहन ठाम त बज्र खसि पड़य !

हम - खट्टर कका, अहाँ एकतरफा फैसला करैत छी । देवता लोकनि केहन-केहन काज कैने छथि से ने देखिऔन्ह ।

खट्टर कका पित्तें कपैत बजलाह – हौ, काज त तेहन-तेहन कैने छथि जे हुनका जल सॅं लघुशंका नहिं करी । देवता क राजा इन्द्र, से तेहन कर्म कैलन्हि जे देह में सहस्र टा छेद भऽ गेलैन्ह । दुष्ट तेहन भारी जे जहाँ ककरो तपस्या करैत देखथिन्ह कि हिनका पेट में हर बहय लगैन्ह जे कतहु इन्द्रासन ने छिना जाय । जहाँ कतहु यज्ञकार्य होमय लागल कि लगले विघ्न करक हेतु तैयार ! एखनो धरि ई बानि छुटलैन्ह अछि ?

हम - परन्तु ओ वीर केहन रहथि ?

खट्टर कका - तेहन वीर रहथि जे मेघनाद बान्हि कऽ लऽ गेलैन्ह । जे राति-दिन अमरावती में पड़ल-पड़ल अप्सरा सभक अधरासव पिबैत रहताह से युद्ध में की ठठताह ? सहस्राक्ष भेने की हेतैन्ह ? लड्बाक खातिर सहस्रबाहु होमक चाही। परन्तु ई त केवल सिंचन करबा में बहादुर। 'अहल्या' कैं उर्वरा बनैबा में चोख।

हम- खट्टर कका, देवते लोकनि क पुण्य-प्रताप सॅं पृथ्वी स्थिर छथि । यावत् पर्यन्त सूर्य चन्द्रम

खट्टर कका- सूर्य-चन्द्रमा क नाम नहिं लैह । सूर्य क प्रताप सैह छैन्ह जे हनुमानजी मूँह में धऽ लेलथिन्ह। केतु कतेक बेर उगिलि कऽ छोड़ने छैन्ह तकर हाल उषा और कुन्ती जनैत छथिन्ह। स्वाइत ज्योतिष मे हिनका पापग्रह कहैत छैन्ह ! तखन गायत्री मन्त्र में तेज कहाँ सॅं आबौ ? कतबो 'धियो योनः प्रचोदयात्' कै ने किछु फल नहि बहराइत अछि । जौं 'सविता' क कोनो गुण हमरा लोकनि में अबैत अछि त यैह जे 'प्रसविता' क कार्य बढिया जकाँ सम्पादन करैत छी। और चन्द्रमा त तेहन कीर्ति कऽ गेल छथि जे अद्याबधि मूँह में विद्यमान छैन्ह। ई लांक्षन 'यावच्चन्द्रदिवाकरौ' छूटयबला नहिं । स्वाइत छयरोग सॅं ग्रसित भेलाह ! गुरुपत्नीओ क विचार नहिं । एहन महापातक में त गलित-कुष्ट भऽ जाय । पांडुरोग भेलैन्ह से कोन आश्चर्य !

हम - खट्टर कका, देवता लोकनि अज अविनाशी होइत छथि

खट्टर कका- हॅं, 'अज' कही बकरा कैं और 'अवि' नाम भेड़ाक छैक । तकर नाशक त अवश्य होइ छथि । 'अजापुत्रं बलिं दद्यात् देवो दुर्बलघातकः ।' से यज्ञ भाग लेबा काल ई लोकनि अपना में तेना उपरौंझ करै जाइ छथि जे की महापात्र (कंटाह) सभ करताह !

हम- खट्टर कका, छोटका-छोटका देवता क छोडू । बड़का में तिन टा छथि- ब्रह्मा, विष्णु, महेश ।

खट्टर कका बजलाह - तखन बड़को क सुनिये लैह । ब्रह्मा सोझे बोका थिकाह । चारिटा मूँह रहने की हेतैन्ह ? कहियो कोनो काज हुनका बुतें पार नहिं लगलैन्ह । जखन-जखन देवता सभ सहायतार्थ पहुँचल छथिन्ह तखन-तखन की त विष्णु क ओतय जाउ । अर्थात् हमरा सॅं किछु नहिं हैत। ई अपने साक्षी-गोपाल जकाँ पद्मासन लगौने बैसल ! एहन भुसकौल त कोनो देवता नहिं ।

हम - खट्टर कका, सृष्टि क आदि मूल कैं अहाँ एना कहैत छिऎन्ह ?

खट्टर कका - आदि मूल की रहताह? ओ त अपने विष्णु क ढोढी सॅं बहरायल छथि - कमलनाल सॅं । और नहिंए बहरैतथि सैह नीक छल । सत्ययुग मे जन्म लऽ कऽ ओ जेहन कृत्य कैलन्हि तेहन कलयुगो में केओ नहिं कैलक। चारू वेद क कर्ता और से कतहु अपन कन्या क

हम - खट्टर कका, ओ सभक पितामह थिकाह ।

खट्टर कका- यदि ओ वास्तव में सभक पितामह त सौंसे संसार छगरेगोत्र बूझह । नामो त 'अज' (बकरा) छैन्ह । बूझह त ई सृष्टिए वर्णसंकर थीक । एही द्वारे ब्रह्मा एखन धरि बारल छथि । पंचदेवतो क पूजा में हिनका स्थान नहिं छैन्ह । मिथिला में ब्रह्मा क मंदिर कतहु देखलहुन अछि ? सभ देवता क पूजा भऽ चुकला उत्तर दू चारि टा अक्षत जे शेष बचैत छैक से हिनका पर छिटि देल जाइ छैन्ह । जेना अछोप क पात पर भात !

हम - खट्टर कका, सभ में पैघ छथि विष्णु भगवान ।

खट्टर कका बजलाह - ओहन छलिया त केओ नहिं । कतहु मोहन रूप बनि स्त्री कैं फुसियबैत छथि । कतहु मोहनी रूप बनि पुरुष कैं परतारैत छथि। मधु-कैट्भ, सुन्द-उपसुन्द; सभ कैं त छले सॅं मारलन्हि अछि । जालंधर कै स्त्री वृन्दा सॅं तेहन जाल कैलथिन्ह जे अन्तिम विन्दु धरि पहुँचा देलथिन्ह । एहन जालिया दोसर के हैत ?

हम- परन्तु ओ अवतार लऽ कऽ केहन-केहन काज कैने छथि से नहिं देखैत छिऎन्ह ?

खट्टर कका- सभ काज त तेहने छैन्ह। छल, कपट ओ स्वार्थ सॅं भरल। बेचारा बलि सॅं तेहन छल कैलथिन्ह जे ओ बलिदाने पड़ि गेल । हमरा त बुझि पड़ै अछि जे ओही सॅं 'बलिदान' शब्द बनल अछि एहन प्रपंची कतहु लोक भेल अछि ? कतहु भाइ सॅं भाइ कैं फुटका लेब, कतहु बाप सॅं बेटा कैं । कतहु स्वामी सॅं स्त्री कैं । कशिपु सॅं वैर, प्रह्लाद सॅं नाता ! रावण कैं मारि विभीषण कैं राज ! वृषभानु क जमाय सॅं संगे नहिं, और हुनका बेटी सॅं रास ! दुःशासन एक टा चीर हरण कैलक ताहि पर त महाभारत मचि गेल और ई जे एतेक चीरहरण कैलन्हि से भागवते भऽ कऽ रहि गेल ! हमरा त बुझि पड़ैत अछि जे वैह चोरौलहा साड़ी सभ द्रौपदी क आगाँ ढेरी लगा देने होइथिन्ह । यावत अपन स्वार्थ रहलैन्ह ता धरि त वृन्दावनविहारी बनल रहलाह और काज निकसि गेला पर सोझे मथुरा क बाट । फेर किऎक एको बेर घुरि कऽ पुछारी करथिन्ह जे राधा वा ललिता कोना छथि । जे यशोदा ओतेक माखन-मिसरी खोऎल्थिन्ह तिनके कोन यश देलथिन्ह ? बुझी त ई ककरो दोस्त नहिं । अपना मतलब क यार । अपन काज साधक हेतु माछ, काछु, वराह - कोन-कोन रूप ने धारण कैलन्हि अछि ! एहन बहुरुपिया के हैत ? ने नरसिंह रूप धारण करैत देरी, ने बुद्धदेव बनैत । राम बनि धनुष तोडैत छथि, परशुराम बनि फरुसा भजैत छथि। कहियो स्त्री कैं घर में छोडि वन क बाट धरताह । कहियो अपने घर में रहि स्त्री कैं वन क बाट धरौताह । एहने-एहने अङ्गबेङ्गल काज करै मे त मने लगैत छैन्ह । एक अवतार में माइक घेंट छोपै छथि, दोसर में मामकैं पटकि कऽ मारैत छथि। आब कल्कि अवतार लऽ कऽ नहिं जानि की करताह !

हम - खट्टर कका, ई सभ त भगवान क लीला थिकैन्ह ।

खट्टर कका- हॅं, भगवान खेलाइत रहै छथि ! असल में केओ 'गार्जियन' त उपर में छैन्ह नहि । जेना-जेना मन में अबै छैन्ह से करै छथि । ई नेनमति कि कहियो छुटयबाला छैन्ह ! भरि जन्म बूझह त नाबालिगे रहताह । एही राम वा कृष्ण क मुर्ति में कतहु दाढी-मोंछ देखलहुन अछि ?

हम - खट्टर कका, ई त वेश कटगर गप्प कहल । परन्तु विश्व कैं पालन करबाक भार त हुनके उपर छैन्ह ?

खट्टर कका- पालन की करताह ? तेहन भारी आलस्यविलासी जे सदा क्षीरसागर शयन ! सदिखन सासुरे में पड़ल ! देवता सभ बहुत गोहारि करथिन्ह त एक बेर गरुड़ पर चढताह और जा कऽ सुदर्शन चक्र सॅं काज कऽ औताह, तकरा बाद फेरि वैह लक्ष्मी-मुखकमल-मधुव्रत ! राति-दिन सासुर में पड़ल-पड़ल लोक मौगियाह भऽ जाइत अछि । हौ, जकरा पर संसार भरि क हिसाब-किताब करबाक भार होइक से कतहु एहन अहदी भेल रहय ? परन्तु हिनका डाँटौ के ? कहियो भृगु सन ब्राह्मण सॅं पाला पड़ि जाइत छैन्ह तखन बुझैत छथि । असल में तैं ई ब्राह्मण सॅं हड़कलो रहैत छथि । जौं हिनका में कनेको ब्राह्मण क भक्ति रहितैन्ह त हमरा कपार पर दरिद्रा किऎक रहितथि ?

हम - तखन त आब एकेटा बाँकी रहलाह महेश !

खट्टर कका क आँखि और लाल भऽ गेलैन्ह । बजलाह - महेश त सहजे अल बटाहे छथि । आक-धथूर चिबौने, बेमत्त भेल ! हुनका ने जाति-पाँतिक ठेकान, ने छूआ-छूतिक विचार । भूत-प्रेत-बैताल क संग डाँड़ मे चाम लपेटने, हाड-मुंड लऽ कऽ श्मशान में क्रीड़ा करैत ! लोक एना करय त अघोरी कहाबय । एही द्वारे महादेव क प्रसाद केओ खाइत छैन्ह !

हम - वास्तव में महादेव क प्रसाद लोक नहिं खाइत छैन्ह । परन्तु हमरा ई कारण नहिं ज्ञात छल ।

खट्टर कका- कारण यैह जे महादेव नास्तिक छलाह । ई ने कहियो टीक रखलैन्ह ने जनउ । माथ पर जटा, गर में साँप । हौ, बरद पर केओ चढैत अछि ? ई त सभटा धर्म-कर्म डुबा देलन्हि । बूझह त हिनका सन नास्तिक आइ धरि केओ नहिं भेल । स्वाइत सभ मिलि कऽ हिनका जहर दऽ देलकैन्ह !

हम - खट्टर कका, महादेवजी निर्विकार छथि ।

खट्टर कका - सोझे निर्विकार नहिं बुझहुन । ससुर नेओत नहिं देलकैन्ह त गर्दनिए छोपि लेलथिन्ह । एम्हर ससुर क त ई हाल और ओम्हर ससुर क बेटी कैं सदिखन माथे पर चढौने ! ई त कलयुगो कैं जितलन्हि ।

हम - परन्तु महादेवजी आशुतोष छथि । हुनका प्रशन्नो होइत ने देरी ।

खट्टर कका- हॅं , जहाँ केओ दू टा बेलपात चढा देलकैन्ह कि लगले-वरं ब्रूहि । वर देमय काल औढर ढरन। तैं की भेलैन्ह जे भस्मासुर अपने माथ पर हाथ देमय लगलैन्ह । सभ दैत्य बुझी त हिनके सहकाओल अछि । देवता में एहन भोला नाथ दोसर भेटबे कोन करतैक? औखन धरि 'धनिकक बुडिबक शिव अवतार' कहबैत छथि । हौ, हम त अपना भरि चेष्टा कैल जे बमभोला सॅं किछु झीटी, परन्तु कहाँ एखन धरि हाथ लगलाह अछि ? एहन मदक्की क कोन भरोस ?

हम - खट्टर कका, तखन सभ देवता में श्रेष्ठ अहाँ किनका बुझैत छिऎन्ह ?

खट्टर कका- कोना कहिऔह ? स्वयं देवतो लोकनि एकर मिमांसा नहिं कय सकलाह अछि । महादेव विष्णु कैं पैघ मानैत छथिन्ह । विष्णु महादेव कैं पैघ मानैत छथिन्ह । रामजी रामेश्वर महादेव बना कऽ पुजैत छथि । महादेव राम नाम कैं गुरुमंत्र बूझि जप करैत छथि । सीताजी गौरी क पूजन करैत छथि । गिरिजा सीताजी क ध्यान धरैत छथि । पार्वती महादेव क आराधना करैत छथि । महादेव दुर्गा क स्तुति करैत छथि । तेहन गड़बड़ाध्याय छैक जे देवतो लोकनि कैं नहिं बुझि पड़ैत छैन्ह जे के छोट के पैघ । नहिं त महादेव क विवाह मे कतहु गणेश क पूजन हो ! बाप क विवाह में बेटा क पूजा ! देवता क बाते सभ उटपटांग होइत छैन्ह ।

हम – ई देवता लोकनि क सौजन्य थिकैन्ह। जे जेहन पैघ से ततेक विनयी।

खट्टर कका- तों 'देवानां विप्रः' थिकाह ! हौ, देवता सन झगड़ाहु के भेटतौह ? ई लोकनि अपना में तेना लड़ैत गेलाह अछि जे की बटेर लडत ! पहिने त "अहाँ हमर पूज्य त अहाँ हमर पूज्य"। और जहाँ केओ कनेक सनका देलक कि लगले भिड़न्तो होइत देरी नहिं । इन्द्र और कृष्ण में , कृष्ण और महादेव में , महादेव और गणेश मे, कोना-कोना उठापटक भेल छैन्ह से बुझबाक हो त पुराण देखह। और अन्त में फेर वैह स्तुति। अहाँ पैघ त अहाँ पैघ ! हौ, ई लोकनि असाध्य छलाह ।

हम - खट्टर कका, सभ देवता कैं त अहाँ अकार्य के बुझैत छिऎन्ह, तखन सृष्टि क काज कोना चलैत छैक ?

खट्टर कका भङ्घोटना हाथ में लैत बजलाह - असल मे बूझह त एक्के टा देवता तेज छथि । और ओ छथि कामदेव । ब्रह्मा, विष्णु, महेश- तीनू हुनका सॅं हारल छथि । जखन बडके क ई हाल त - कुत्र गण्यो गणेशः ! हिनका पछाडयबाला आइ धरि केओ नहिं जन्म लेलक । तैं हिनका हम सभ सॅं प्रबल देवता मानैत छिऎन्ह । यावत पर्यन्त सृष्टि क प्रवाह चलैत छैक तावत पर्यन्त कामदेव क सत्ता के अस्वीकार कय सकैत अछि ? ई पंचभूतमय शरीर हिनके पंचशर प्र साद थीक । और जाहि दिन ई देवता अपन वाण तरकस में राखि प्रस्थान करताह ताहि दिन प्रलये बूझह । सृष्टिक लोपे कैं त प्रलय कहैत छैक !

हम - तखन कामदहन क जे उपाख्यान छैक ?

खट्टर कका- तकर उनटे अर्थ पौराणिक लोकनि बुझैत छथि । कामदहन मे तृतिया-तत्पुरुष छैक - कामेन दहनम् । चौरासियो लाख योनि हिनका अग्नि सॅं दग्ध होइत अछि । देखह, हिनक जतेक नाम छैन्ह सभ सॅं यैह बात सूचित होइ अछि । सभ कामना सॅं प्रबल – तैं कामदेव । लोक कैं मत्त कैनिहार – तैं मदन । मन कैं मथि कऽ छोडि दैत छथिन्ह – तै मन्मथ । विरहिनीक जान मारैत छथिन्ह – तै मार । आनन्दक स्वामी थिकाह – तै रतिपति ।

हम- तखन महादेवजी हुनका नहिं जितने छथिन्ह ?

खट्टर कका- महादेव हुनका की जितथिन्ह ? वैह महादेव कैं जितने छथिन्ह । जाहि सॅं एखन धरि महादेवजी अर्द्धनारीश्वर कहवैत छथि । पौराणिक बुझै छथि जे शिवजी मदन कैं भस्म कऽ देलथिन्ह । हम बुझैत छी जे मदने हुनका भस्ममय बनौने छथिन्ह । नहिं त स्त्री क वियोग में दोसर केओ किऎक ने भस्म रमबैत अछि ? हौ, यदि ओ वास्तव मे मदन-विजय कैने रहितथि त गणेश क श्रीगणेश कोनाहोइतैन्ह ?

हमरा निरुत्तर देखि खट्टर कका पुनः अपना तरंग में बहय लगलाह । बजला ह – हौ, असल में बुझह त कामदेव महादेव, सभ एक्के थिकाह । जैह हर ,सैह मार । जैह अनंग , सैह दिगम्बर । मन मे उत्पन्न होइ छथि तैं मनोभव । हिनके स सृष्टि उत्पन्न होइ अछि तैं भव । बूझह त असली सृष्टिकर्ता यैह थिकाह । ब्रह्मा, विष्णु, महेश - सभ हिनके भिन्न-भिन्न स्वरूप थिकथिन्ह । अपने सॅं उत्पन्न भऽ जाइत छथि तैं स्वयंभू । देखऽ में नहिं अवै छथि तैं निराकार। सभ ठाम व्यप्त छथि तैं सर्वव्यापी । अन्त नहिं छैन्ह तैं अनन्त । 'भग' सॅं संयुक्त , तैं भगवान । एखन शिवलिंग पर जे जल ढारऽ लेल जे जाइ छहुन से हिनके पूजा होइ छैन्ह कि अनकर ?

हम - खट्टर कका, अहाँक त सभ टा बात अद्भूते होइ अछि ।

खट्टर कका - ठीक कहैत छिऔह । असली देवता थिकाह कामदेव । वैह श्रृष्टि क मूलकर्ता छथि । तैं सर्वदा सॅं हुनके पूजा होइत आएल छैन्ह । केओ एक अंगक पूजा करैत अछि, केओ दोसर अंग क । परन्तु विचारि कऽ देखने तत्व एक्के - चाहे शैव में देखह चाहे शाक्त में । लिंग पूजा क मर्म बुझबाक हो त लिंगपुराण देखह -

 

लिंगवेदी उमादेवी लिंगं साक्षान्महेश्वरः ।

तयोः सम्पूजनादेव देवी देवश्च पूजितौ ॥

 

मूलतत्व सैह थिकैक । आब लोक ओकरा द्वैतवाद कहौ वा अद्वैतवाद अथवा विशिष्टाद्वैत । ताहि सॅं हमरा झगड़ा नहिं ।

हमरा मुँह तकैत देखि खट्टर कका बजलाह – तों भतिज थिकाह । बेसी खोलि कऽ कोना कहिऔह ? एखन शिवालय में जा कऽ ध्यान सॅं देखह गऽ त शिवलिंग ओ जलढरी - दुहूक रहस्य बुझबा में आबि जैतौह !

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