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चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय – Biography of Chandra Shekhar Azad

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आजाद (Chandra Shekhar Azad) का जन्‍म 23 जुलाई 1906 आदिवासी ग्राम भावरा में हुआ था इनके सम्‍मान में इनके गॉव का नाम वर्ष 2011 में बदलकर चंद्र शेखर आजाद नगर कर दिया गया इनके पिता का नाम सीताराम तिवारी और माता का नाम जगरानी देवी था इनके पिता मूल रूप से उत्‍तर प्रदेेेेश के उन्‍नाव जिले के बदर गॉव के रहने वाले थे लेकिन भीषण अकाल पडने कारण उन्‍हें ये गॉव छोडना पडा था |

चन्द्रशेखर की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही प्रारम्भ हुई। पढ़ाई में उनका कोई विशेष लगाव नहीं था। इनकी पढ़ाई का जिम्मा इनके पिता के करीबी मित्र पं. मनोहर लाल त्रिवेदी जी ने लिया। वह इन्हें और इनके भाई (सुखदेव) को अध्यापन का कार्य कराते थे और गलती करने पर बेंत का भी प्रयोग करते थे। चन्द्रशेखर के माता पिता उन्हें संस्कृत का विद्वान बनाना चाहते थे किन्तु कक्षा चार तक आते आते इनका मन घर से भागकर जाने के लिये पक्का हो गया था। ये बस घर से भागने के अवसर तलाशते रहते थे। इसी बीच मनोहरलाल जी ने इनकी तहसील में साधारण सी नौकरी लगवा दी ताकि इनका मन इधर उधर की बातों में से हट जाये और इससे घर की कुछ आर्थिक मदद भी हो जाये। किन्तु शेखर का मन नौकरी में नहीं लगता था। वे बस इस नौकरी को छोड़ने की तरकीबे सोचते रहते थे। उनके अंदर देश प्रेम की चिंगारी सुलग रहीं थी। यहीं चिंगारी धीरे-धीरे आग का रुप ले रहीं थी और वे बस घर से भागने की फिराक में रहते थे। एक दिन उचित अवसर मिलने पर आजाद घर से भाग गये।

चंद्रशेखर आज़ाद 1919 में अमृसतर में हुए जलियां वाला बाग हत्याकांड से बहुत आहत और परेशान हुए। सन 1921 में जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की तब चंद्रशेखर आज़ाद ने इस क्रांतिकारी गतिविधि में सक्रिय रूप से भाग लिया। आजाद ने सबसे पहली बार गांधी जी द्वारा चलाये गये असहयोग आन्दोलन में भाग लिया उस समय उनकी उम्रं मात्र 15 वर्ष थी तभी उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, दिसंबर की कड़ाके वाली ठंड की रात थी और ऐसे में Chandra Shekhar Azad को ओढ़ने – बिछाने के लिए कोई बिस्तर नहीं दिया गया क्योंकि पुलिस वालोँ का ऐसा सोचना था कि यह लड़का ठंड से घबरा जाएगा और माफी माँग लेगा, किंतु ऐसा नहीं हुआ, यह देखने के लिए लड़का क्या कर रहा है और शायद वह ठंड से ठिठुर रहा होगा, आधी रात को इंसपेक्टर ने चंद्रशेखर की कोठरी का ताला खोला तो वह यह देखकर आश्चर्यचकित हो गया कि चंद्रशेखर दंड – बैठक लगा रहे थे और उस कड़कड़ाती ठंड में भी पसीने से नहा रहे थे । दूसरे दिन Chandra Shekhar Azad को न्यायालय में मजिस्ट्रेट के सामने ले जाया गया । और जब जज ने उनसे उनके पिता नाम पूछा तो जवाब में चंद्रशेखर ने अपना नाम आजाद और पिता का नाम स्वतंत्रता और पता जेल बताया था उनके इस वर्ताव के लिए जज ने उन्‍हें 15 कोडे मारने की सजा सुनाई थी चाबुक के हर एक प्रहार पर युवा चंद्रशेखर "भारत माता की जय" चिल्लाते थे। तब से चंद्रशेखर को आज़ाद की उपाधि प्राप्त हुई और वह आज़ाद के नाम से विख्यात हो गए।यहीं से चंद्रशेखर सीताराम तिवारी का नाम चंद्रशेखर आजाद पड़ा |

स्वतंत्रता आन्दोलन में कार्यरत चंद्रशेखर आज़ाद ने कसम खाई थी कि वह ब्रिटिश सरकार के हांथों कभी भी गिरफ्तार नहीं होंगे और आज़ादी की मौत मरेंगे ।

इसके बाद आजाद 17 वर्ष की अवस्‍था में क्रांतिकारी दल ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ में सम्मिलित हो गए आजाद ने अपनी जिंदगी के 10 साल फरार रहते हुए बिताए इसमें ज्यादातर समय झांसी और आसपास के जिलों में ही बिताया था चंद्रशेखर आजाद प्रसिद्ध काकोरी कांड में सक्रिय भाग लिया था इस कांड में 9 अगस्त, 1925 को क्रान्तिकारियों ने लखनऊ के निकट काकोरी नामक स्थान पर सहारनपुर – लखनऊ सवारी गाड़ी को रोककर उसमें रखा अंगेज़ी ख़ज़ाना लूट लिया काकोरी कांड के बाद आजाद ने अपने संगठन का नाम बदलकर नाम ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन एण्ड आर्मी’ रखा था |

असहयोग आंदोलन के स्थगित होने के बाद चंद्रशेखर आज़ाद और अधिक आक्रामक और क्रांतिकारी आदर्शों की ओर आकर्षित हुए। उन्होंने किसी भी कीमत पर देश को आज़ादी दिलाने के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया। चंद्रशेखर आज़ाद ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर ऐसे ब्रिटिश अधिकारियों को निशाना बनाया जो सामान्य लोगों और स्वतंत्रता सेनानियों के विरुद्ध दमनकारी नीतियों के लिए जाने जाते थे। चंद्रशेखर आज़ाद काकोरी ट्रेन डकैती, वाइसराय की ट्रैन को उड़ाने के प्रयास , और लाहौर में लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिए सॉन्डर्स को गोली मारने जैसी घटनाओं में शामिल थे।

इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस ने उन्हें घेर लिया और गोलियां दागनी शुरू कर दी दोनों ओर से गोलीबारी हुई चंद्रशेखर आजाद ने अपने जीवन में ये कसम खा रखी था कि वो कभी भी जिंदा पुलिस के हाथ नहीं आएंगे इसलिए उन्होंने खुद को गोली मार ली चंद्रशेखर आजाद की मृत्‍यु 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में में हुई थी आजाद की मृत्‍यु के बाद इस पार्क का नाम बदलकर चंद्रशेखर आज़ाद पार्क रखा गया था आजाद ने एक कविता लिखी थी और वह अक्सर उसे गुनगुनाया करते थे-

दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे,

आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे

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